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शिक्षा को क्यों बाजारीकरण के हवाले किया जा रहा है आखिर सरकार की ऐसी क्या मजबूरी है? क्या सरकार पूर्णरूप से निरंकुश हो गयी है

JNU की स्थिति पर काफी सारे लोग की सोच ऐसी है जिनका अपने जीवन मे कभी कॉलेज और विश्वविद्यालय से कोई वास्ता ही नही रहा और काफी ने तो अपने जीवन में विश्वविद्यालय देखा ही नही परन्तु वो  ज्ञान ऐसे देते है जैसे उनके इतना ज्ञानी कोई दूसरा है ही नहीं।  क्योंकि आजकल वाहट्सएप्प यूनिवर्सिटी और कुछ ज्ञानी पत्रकार जिनके खोजी ज्ञान के  आधार पर जिसने 2000 रुपये के नोट से चिप निकाली थी ।। 

सोचने और समझने की बात यह है कि शिक्षा को क्यों बाजारीकरण के हवाले किया जा रहा है आखिर सरकार की ऐसी क्या मजबूरी है क्या सरकार पूर्णरूप से दिवालिया हो गयी है जो सरकारें अपने प्रचार पर अरबों रुपये खर्च कर देती है क्या वो कुछ पैसे देश के वंचित तबके के छात्रों की पढाई में नहीं खर्च कर सकती  जबकि एजुकेशन सेस के नाम जो करोड़ो रूपये सरकार ने संग्रह किये है वो उसको खर्च तक नहीं कर पा रही।  अभी हाल में यह खबर सुर्ख़ियों में रही कि सरकार ने दिल्ली यूनिवर्सिटी की कुछ जमीन को किसी बिल्डर के हाथ दिए है अपार्टमेंट बनाने के लिए जबकि उस जगह पर बड़े मकानों के बनाने पर रोक है इसका मतलब यह साफ़ है कि यह सरकार राष्ट्रीत्य सम्पदा का खुलेआम अपने मित्रों के लिए छोड़ रखा है , जो चाहे जितना चाहे उसका भरपूर दोहन कर सकता है क्योंकि सरकार  में उनके मित्र है।  

आप यह जान लें कि यह लड़ाई केवल JNU के विद्यार्थियों की नही बल्कि इस देश के उन सभी अभिवावक का है जिनके बच्चे आज नही तो कल कॉलेज या विश्वविद्यालय में जाएंगे । क्योंकि मंत्री सांसद और बड़े पूंजीपतियों धनपशुओं के बच्चे तो देश में पढ़ते ही नहीं इसलिए इनको इससे कोई फर्क पड़ता भी नहीं और दूसरे तरफ ये गरीबों की बात तो करते हैं परन्तु कुछ करते नहीं और अब तो ये देश के नेता और मंत्री जो एक स्वर में अपनी सैलरी बढ़ा लेते है आखिर विद्यालय कॉलेज और विश्वविद्यालयों से इनको इतना खतरा क्यों लग रहा है।  क्योंकि बच्चे जो पढ़ लिख लेंगे वो सवाल करेंगे इसलिए इनकी इच्छा यह है की या तो निजी विद्यालय रहे निजी विश्वविद्यालय रहे जहाँ पर केवल अमीरों के बच्चे तो पढ़ सके और बाकि गरीबों के बच्चे हाई स्कूल या इंटर तक की पढाई बस कर पाए किसी तरह और उच्च शिक्षा से उन्हें वंचित किया जा सके यह सारे प्रकरण एक शाजिश के हिस्से है।  इन्ही विषयों को ध्यान करते हुए राम मनोहर लोहिया जी ने कहा था की अगर सड़के सुनसान होंगी तो संसद आवारा हो जाएगी।  वो तो धन्य है जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र जिन्होंने सरकार के खिलाफ जायज़ आवाज उठाई।

Student Protest against fee hikes

शायद आप सभी जानते है कि देश के प्रधानमंत्री जो चाय बेच कर देश के प्रधानमंत्री बने है और मानव संसाधन विकास मंत्री जिन्होंने बहुत सारी पुस्तकें लिखी है क्या इस बात से वाकिफ नही हैं कि उनके मंत्रिमंडल में 2 प्रमुख मंत्री जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से आते है । विश्व को धर्मगुरू बनाने वाले लोग अपने ही बच्चों के दुश्मन बन जाएंगे ऐसा कभी किसी ने सोचा नही था । 

क्या जेएनयू से निकले इन सभी राजनेताओं को राजनितिक अंधभक्तों के हिसाब से देशद्रोही कहाँ जा सकता हैं? जेएनयू छात्र राजनीति का गढ़ माना जाता हैं जेएनयू में धनबल और बाहुबल के जरिए नहीं बल्कि वैचारिक बहसों द्वारा चुनाव लड़ें और जीते जाते हैं.

जरा सोचिये शिक्षा पर सब्सिडी गलत है या JNU में शिक्षा पर सब्सिडी गलत है? गौर करियेगा AIIMS में एक डॉक्टर की पढ़ाई पर सरकार 1.70 करोड़ खर्च करती है. आधे डॉक्टर डिग्री हासिल करके विदेश चले जाते हैं. सही है या गलत है? क्या AIIMS बंद कर देना चाहिए? 

IIT में पढ़ने वाले लड़के शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी विदेश चले जाते है क्या उनके ऊपर सरकार का पैसा नहीं लगता ? तो क्या IIT बंद कर देना चाहिए? 

इस प्रकार की बात करने वाले लोग वास्तव में आज तक इस देश के नागरिक नहीं बन पाए, उनकी सोच और उनका मार्गदर्शन आज के दौर में राजनितिक पार्टियों के आईटी सेल और व्हाट्सएप्प विश्वविद्यालय के द्वारा किया जा रहा है जो देश हित में कहीं से उचित नहीं है।  दिनभर हिन्दू मुस्लिम मंदिर मस्जिद कर के सामाजिक ताने बाने को तोड़ने में लगे है।  कहीं कोई संस्कृत के अध्यापक विषय को लेकर आंदोलन कर  रहा है।  आखिर हम जा कहाँ रहे है।  क्या भाषा की भी कोई जाति होती है कोई धर्म होता है फिर तो देश में अंग्रेजी पढ़ाने वाले लोग देश द्रोही हो गए।  जो अंग्रेज विदेशों में संस्कृत पढ़ाते है उनको क्या करेंगे।  हमें तो गर्व होना चाहिए की इस गंगा जमुनी तहजीब के देश में मुसलमान संस्कृत पढ़ाये और अगर हिन्दू उर्दू पढे और पढाये तो कितनी अच्छी बात होती संस्कृति की दुहाई देने वाले लोग यह जान लें कि संकीर्णता हमारी संस्कृति नही है। 


BHU Students Are Still Protesting Against Their Muslim Sanskrit Professor

इतिहास गवाह है आजतक ऐसा कोई दौर न हुआ जब छात्रों किसानों मजलूमों गरीबों पर लाठियां ना बरसी हो, यह कोई नया नही है, जलियावाला हत्याकांड भी इस देश में किया गया था, परन्तु सबसे बड़ी बात ये है कि जिनके बच्चे पिट रहे हैं या कल पिटने वाले हैं वे उनके साथ हैं जिनके हाथ मे लाठी है। और वो लाठी वाला भी किसान मजदूर परिवार से ही है और हां चौंकिए मत बड़ा अजीब लगता है ना अपने अधिकार के लिए, हक़ के लिए लड़ने वालों को देखकर, जी हां सीधी रीढ़ वाले लोग हमारे समय में कम जरूर हुए हैं लेकिन समाप्त नहीं हुए। अधिकार मांगते युवा, किसान आपको इसलिए चुभते हैं कि आपने अपने जमीर को, रीढ़ को कब का ग़ैर जरूरी बना दिया। विरोध तो छोड़िए अब आपके सपोर्ट से भी कुछ होनेवाला नहीं है, आप कॉर्पोरेट और उन्मादी राजनीति के खिलौने मात्र बनकर रह गए हैं। मामूली सी नौकरी और मेट्रो की लाइफ में सुबह से लेकर शाम तक घुटने टेकते हुए आपको कभी रीढ़ का एहसास होता है क्या? रीढ़ है भी नहीं!  Jnu के युवाओं को उन्नाव के किसानों बेरहमी से बूटों तले रौंदते देखकर ताली बजाना रीढ़ के साथ सम्भव भी नहीं है।

आज की परिस्थिति में अगर FREE_EDUCATION  की डिमांड और शिक्षा के व्यवसायीकरण के विरुद्ध आवाज उठाना नए भारत में अपराध है तो एक नागरिक होने के नाते लानत है। हम  केवल JNU ही नहीं बल्कि अपने हक़ के लिए लड़ने वाले हर युवा और छात्र के साथ हैं।  

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