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भारत में ही क्यों बढ़ रही है लिंग अनुपात के समस्या। आंकड़े बढ़ा रहे है चिंता !

पंजाब, जम्मू और कश्मीर, राजस्थान, गुजरात, उत्तराखंड और महाराष्ट्र जैसे प्रदेशों में भी पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या का आंकड़ा चिंताजनक है। इन क्षेत्रों में प्रति 1,000 लड़कों पर लड़कियों की संख्या 900 से भी कम दर्ज की गयी है। जबकि केरल जैसे शिक्षित राज्य में भी लड़कियों की संख्या लड़कों के मुक़ाबले बहुत कम है।

देश और दुनिया में आज के समय में भी पुरुषों के मुक़ाबले महिलाओं की संख्या लगातार कम होती जा रही है। सूत्रों द्वारा मिली जानकारी से पता चला है कि सिर्फ भारत में ही लिंग अनुपात की समस्या दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। यदि आंकड़ों की माने पता चलता है कि साल 2011 की जनगणना में देश में प्रति हज़ार पुरुषों के मुक़ाबले  940 महिलाएँ थीं। 

इससे पहले की बात करे तो साल 2001 में देश में महिलाओं की संख्या 933 थी। हालांकि साल 2011 के आते आते कुछ बदलाव दिखा ज़रूर लेकिन थोड़े समय के बाद स्तिथि फिर से बत्तर हो गयी। और लिंगानुपात असंतुलित होता चला गया .

साल 2014 से 2016 तक के आंकड़े देखें तो चलता है कि इस दौर में 1000 पुरुषों के मुक़ाबले देश में महिलाओं की संख्या सिर्फ 898 थी। साल 2015 से 2017 के बीच यह संख्या 896 तक की रही। और धीरे धीरे यह आंकड़ा लगातार गिरता ही जा रहा है। जैसे जैसे साल गुज़रते जा रहे है देश में महिलाओं की गिनती घटती जा रही है। हालाकिं मौजूदा सरकार “बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ” योजना से देश को जागरूक करने लगी में जरूर लगी लेकिन हालात अभी भी वैसे के वैसे ही है .

 “एसआरएस” के सर्वे की रिपोर्ट में सामने आया है कि अधिकारियों ने 31 दिसंबर, 2017 तक आँकड़ा तैयार किया है। इसके लिए सर्वेक्षण 2018 में किया गया था और इसका विश्लेषण 2019 में सार्वजनिक किया जा रहा है। आप को बता  दे कि लिंगानुपात का उपयोग प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या गिनने के लिए किया जाता है।  

भारत में महिलाओं के लिंग अनुपात में कईं जगह पुरुषों के मुक़ाबले कमी पायी गयी है . साल 2017 की एसआरएस सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक जन्म दर के मुक़ाबले में छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक 961 की संख्या से लिंगानुपात  दर्ज किया . दूसरी और हरियाणा में ये अनुपात 833 के संख्या कर्म से दर्ज किया गया . 

वही 2011 जनगणना के अनुसार हरियाणा राज्य में ये लिंगानुपात 879 संख्या से दर्ज किया था और छत्तीसगढ़ में इसकी कुल संख्या 991 की थी। बात अगर राजधानी दिल्ली की करे तो 2011 में पूरी दिल्ली का लिंगानुपात 868 रहा था। दक्षिण दिल्ली का आंकड़ा 862 का था। ऐसी स्थिति सिर्फ़ राजधानी दिल्ली या हरियाणा की नहीं है। 

एक रिपोर्ट की जानकारी से पता चला है कि पंजाब, जम्मू और कश्मीर, राजस्थान, गुजरात, उत्तराखंड और महाराष्ट्र जैसे प्रदेशों में भी पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या का आंकड़ा चिंताजनक है। इन क्षेत्रों में प्रति 1,000 लड़कों पर लड़कियों की संख्या 900 से भी कम दर्ज की गयी है। जबकि केरल जैसे शिक्षित राज्य में भी लड़कियों की संख्या लड़कों के मुक़ाबले बहुत कम है। 

ख़राब महिला मृत्यु-

सूत्रों द्वारा मिली जानकारी से पता चला है कि देश में महिलाओं के मृत्यु दर में भी असंतुलन बढ़ता जा रहा है। जिसकी वजह से देश में लिंगानुपात की  स्थिति ख़राब होती जा रही है। 

आंकड़े कहते है कि महिलाएं साल 2017 में राष्ट्रीय स्तर पर 6.3 के मृत्यु दर में रही । वहीँ छत्तीसगढ़ में यह संख्या सबसे अधिक7.5 मृत्यु दर पर रहा।

 सबसे न्यूनतम राजधानी दिल्ली में महज़ 3.7 दर्ज किया गया। जानकारों का कहना है कि पिछले 5 दशकों का हाल देखा जाए तो पता चलता है कि राष्ट्रीय मृत्यु दर में बीते पांच सालों में  0.7 अंकों की गिरावट दर्ज की गई। 

एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पुरुष मृत्यु दर में 1.0 अंक की गिरावट आयी है जबकि महिला मृत्यु दर में 0.5 अंक की गिरावट आयी है. यानी पुरुष मृत्यु दर के मामले में स्थिति ज़्यादा बेहतर हुई है। साल 1971 में ये मृत्यु दर 12.5 फ़ीसदी पर था वहीं साल 2017 तक यह संख्या लुढ़क कर सीधा 6.3 फ़ीसदी पर आ गई यानी आधी से भी कम। 

भ्रूण हत्या, बलात्कार और शिक्षा-

आज देश में महिलाओं की कमी होने की सबसे बड़ी ये तीन वजहें है शिक्षा संस्थानों में कमी, बढ़ रहे बलात्कार और भ्रूण हत्या ! देश में जिस गति से बलात्कारों की संख्या बढ़ रही है हर कोई बेटी पैदा घबरा रहा है देश में बलात्कार इतने बढ़ गए है कि कई देशों ने भारत देश को महिलाओं के असुरक्षित घोषित कर दिया है।

आज 6 माह की बच्ची के जिस्म के साथ भी बर्बरता भरा सलूक होने लगा है ऐसे में लोग बेटी पैदा करने से पहले 10 बार सोचने पे मजबूर है। 

दूसरा कारण है शिक्षा संस्थानों की कमी । आज के समय में भी देश की आबादी का एक बड़ा भाग शिक्षा से कोसों दूर है। शिक्षा विकास ना होने की वजह से कई पिछड़े वर्ग के लोग लड़का-लड़की में भेदभाव करते है चाहे फिर को कुछ पुरानी कुप्रथाओं के कारण हो या फिर अविकसित सोच का। लेकिन आज लड़की का जन्म लेना बहुत से लोगों को बर्दाश्त नहीं है नतीजा देश में लड़कियों की कमी।

भ्रूण हत्या से भी भारत में लिंग अनुपात तेज़ी से बढ़ रहा है जन्मपूर्व लिंग निर्धारण वाली अल्ट्रासाउंड मशीन अब देश में महिलाओं के लिए खतरा बन रही है।

वर्ष 1988-2003 के बीच भारत में निर्मित अल्ट्रासाउंड मशीनों की संख्या में तेज़ी से बढ़ोतरी हुई। यानी शिक्षा और तरक्की के साथ ही समाज दकियानूसी सोच की ओर अग्रसर होने लगा! जब पानी सिर के ऊपर से जाने लगा तो सरकार ने इन नई प्रौद्योगिकियों के कारण उत्पन्न होने वाली कन्या भ्रूण को रोकने के लिए नियम लागू किए। लेकिन भ्रष्टाचार का पलड़ा कही न कहीं क़ानून को दबा ही देता है। 

इंडियास्पेंड की अक्टूबर 2016 की रिपोर्ट के अनुसार, सीएजी  के मुताबिक़ उत्तर प्रदेश सरकार ने कन्या भ्रूण-हत्या को रोकने के लिए आवंटित राशि में से आधा भी ख़र्च नहीं किया।

समाज और ज़िम्मेवारी- 

आज हम एक ऐसे भारत ,एक ऐसे समाज में रहते है जिसने खुद को प्रगति के पथ पर दौड़ाना शुरू कर दिया है। जिसमे महिलाओं का भी उतना ही योगदान रहा है जितना पुरुषों का। हाल ही में देश ने चंद्रयान-2 अन्वेषण अभियान को पूरा किया है जिसमे महिलाओं का भी भरपूर योगदान देखने को मिला , दूसरी ओर जब हम ऐसे ही समाज में बलात्कार ,भ्रूण हत्या जैसी ख़बरें सुनते है तो सर शर्म से झुक जाता है। एक तरफ ये समाज बेटी बचाने के नारे लगता है तो दूसरी तरफ उसी बेटी को गर्भ में ही सुला दिया जाता है। 

लिंग अनुपात का ब्योरा बनाने वाली एक रिपोर्ट ने दावा किया है कि बढ़ते लिंग निर्धारण के कारण भारत और चीन जैसे देशों में 20 वर्षों में असंतुलन आएगा और इस असंतुलन का समाज पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा। इसलिए ये हम सबकी ज़िम्मेवारी बनती है कि इस बढ़ती हुई समस्या के खिलाफ हम लोग मिलकर कदम उठाए ताकि इस परेशानी से जल्द जल्द छुटकारा मिल सके नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब भारत विश्व भर में असंतुलित लिंग-अनुपात के लिए जाना जाने लगेगा।

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