NationPolitcal Room
Trending

सैद्धांतिक राजनीति के अंतिम महानायक, युवातुर्क व् पूर्व प्रधानमंत्री श्री चंद्रशेखरजी !

इंदिरा के आपात काल में कांग्रेस पार्टी की तरफ से इकलौते थे जो जेल गए। जेल जाने से पहले उनके पास दो रास्ते थे एक जेल का दूसरा अपने सिद्धांतों से खिलवाड़ , लेकिन इन्होंने अपने सिद्धांतों को ज़िंदा रखते हुए जेल जाना बेहतर समझा।

सिर्फ सात महीने के लिए देश के प्रधानमंत्री और राजनीति के युवा तुक के साथ-साथ सैद्धांतिक राजनीति के अंतिम नायक भी। सुनने में बड़ा अजीब सा लगता है लेकिन सत्य ऐसा ही है। “चंद्रशेखर” भारतीय राजनीति में एक ऐसा नाम है जिसने देश के लोकतंत्र में स्वच्छ और निस्वार्थ राजनीति को रूबरू करवाया। 

वो भी सिर्फ सात महीने के कार्यकाल में रहे ,जिसमे तीन महीने तो वे एक ऐसी सरकार के मुखिया बने रहे जो सिर्फ नाम की सरकार थी। यानि ये कहना सही होगा कि असल मायने में उन्होंने सिर्फ चार महीनों तक ही सत्ता की बागडोर संभाली। लोकसभा में सिर्फ 54 सांसद के साथ खड़े चंद्रशेखर जी  को प्रधानमंत्री बनने के लिए कांग्रेस का समर्थन मिला था। 

अपने 7 महीने के कार्यकाल में या यूं कहे कि महज़ 4 महीने कार्यकाल में इस शख्सियत ने देश हित के लिए ऐसे ऐसे निर्णय लिए जो शायद ही आज तक कोई सरकार ले पायी हो।

इतिहास के पन्ने कहते है कि इन्होंने कुवैत को मुक्त करने के लिए सद्दाम हुसैन के खिलाफ युद्ध में अमेरिकी सेना की सहायता करते हुए उनके विमानों को ईंधन भरने की अनुमति दी क्योंकि वे हिन्द महासागर से उड़ान भरते थे। उनके बाद पूर्णकालीन अवधियों के तीन प्रधानमंत्री अमरीका के सैन्य रसद मदद समझौते पर  हस्ताक्षर करने में छटपटाते रहे। 

कहतें है कि उस समय कांग्रेस पार्टी देश के संसद भवन में ढोल पीट कर कह रही थी कि “चंद्रशेखर जी” ने विदेशी भुगतान की कमी से बचने के लिए एक हवाईजहाज भर के सोना बाहर भेजा था। लेकिन “चंद्रशेखर जी” ने  “मनमोहन सिंह” जी तालिका में पुनः वापिस लाते हुए सुधारों को आसान बनाया। उन्होंने “यशवंत सिन्हा” जी को अपने वित्त मंत्री के रूप चुनकर सुधार का खाका तैयार करवाया। 

इस घटना को याद करते हुए यशवंत सिन्हा जी कहते है कि “वह पहली बार इस युगपुरुष से तब मिले थे जब दोनों बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री करपूरी ठाकुर से मिलने गए थे। बिहार कैडर के आईएएस अधिकारी सिन्हा जो अब भूतल परिवहन संयुक्त सचिव हैं, छोड़कर जाने और स्वैच्छिक क्षेत्र में काम करने की योजना बना रहे थे।  

वे कहते है कि उन्हे पता ही नहीं था इतने बड़े पद के लिए चंद्रशेखर उनका चयन पहले से ही कर चुके है चंद्रशेखर जी ने उन्हे बिना कुछ कहे अपने घर बुलाया और कहने लगे कि “राजनीती के ज़रिए आप गली ,गांव या शहर के बदले देश बदलने का कार्य कर सकते है इसलिए आपको एनजीओ के अलावा राजनीती में उतरना चाहिए।

सन 1984 के दिल्ली नरसंहार में पीड़ित सिख भाइयों की सेवा करते हुए  सिन्हा ने “जॉर्ज फर्नांडीस व् चंद्रशेखर” जी  द्वारा लगाए शिविरों में अपना भरपूर योगदान दिया और बाद में चंद्रशेखर जी के कहने पर राजनीति में आ गए। 

सरदार मनमोहन सिंह के विषय को लेकर यशवंत सिन्हा कहते है कि उस दौर में चंद्रशेखर जी को इस बात चिंता थी कि उनके सांसदों में एक भी सिख नेता नहीं है इसलिए उन्होंने मनमोहन सिंह को उनके दक्षिण आयोग में मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में वापस लाया। 

चंद्रशेखर जी ने सबसे कठिन अध्यक्षता करते हुए समय देश को जोड़े रखा जब उन्ही के इर्द गिर्द रहने वाले लोगों ने देश की सबसे बुरी तस्वीर बनने का अंदाज़ा लगा लिया था। 

देश में फिर मध्यकालीन चुनाव हुए थे क्योंकि उसी दौर में राजीव गाँधी की हत्या कर दी गयी थी। और एक समय के बाद कांग्रेस ने भी उनसे समर्थन वापस ले लिया था .

और कारण बताया गया कि वे गाँधी परिवार की जासूसी करवाने में लगे हुए है। यह कारण कितना सही था ये तो आप समझते ही होंगे और अगर नहीं समझे तो 1991 के चुनावों एक नारा सारी कहानी साफ़ कर देता है  “चालीस साल बनाम चार महीने”

 चंद्रशेखर तो कुछ नहीं बोले लेकिन कुलदीप नायर ने तब एक बात कही थी कि  “क्या वह सच नहीं बोल रहे हैं? कांग्रेस के लोगों ने 40 वर्षों में जो किया, उनके लोग शायद चार महीनों में कर सकते हैं!”  

अपनी 54 सदस्यीय संसदीय ताकत और अपने स्वयं के हाथों में सत्ता के सकेन्द्रण के साथ उन्होंने अपने विरोधियों से एक नारा प्राप्त किया: अलीबाबा और चालीस चोर। शायद अब आपके सामने पूरी तस्वीर बन गयी होगी। 

इतिहास के पन्ने कहते है कि 4 महीने के कार्यकाल के बाद वे  इंदिरा गाँधी के बाद सबसे मज़बूत प्रधानमंत्री के रूप में विख्यात होने लगे थे। 

कश्मीरी अलगावादियों ने जब सैफुद्दीन सोज़ की बेटी का अपहरण कर लिया था तब चंद्रशेखर जी ने पाकिस्तान में नवाज़ शरीफ को फोन काल से यह सुनिश्चित करने को कहा कि लड़की को किसी भी हालत मे उसके घर सुरक्षित रूप से वापस भेजा जाए बिना किसी आदान प्रदान के। तब शायद आदान-प्रदान जैसे शब्द इस युवा तुर्क के पास थे ही नहीं। 

“चंद्रशेखर” हमारे सभी अल्पावधि प्रधान मंत्रियों में सबसे ज्यादा छाप छोड़ने वाले प्रधानमंत्री थे, जिनकी लोकसभा में ताकत 10 प्रतिशत से भी कम थी। या यूं कहे कि सबसे काम थी। 

राजीव की हत्या के बाद चुनाव में नरसिम्हा राव की अल्पमत सरकार को सत्ता सौंपने के बाद चंद्रशेखर अपना व्यक्तिगत जीवन के लिए सेवानिवृत्त हो गये थे किसी के दुश्मन ना होकर सबके दोस्त। जब वे आश्रम में रहते थे तो उनके विरोधी दल के नेता भी उनसे सलाह-मशवरा और रॉय मांगने आते रहे और चंद्रशेखर भी बिना किसी संकोच के उनकी सहायता करते रहे। शायद यही एक  समाजवादी की निशानी है। 

इनकी छवि को समझना पाना एक पल के बहुत आसान लगता और लेकिन दूजे ही पल कठिन भी लगता है। यूं ही नहीं उन्हे एक फायरब्रांड युवा समाजवादी के रूप में देखा और सुना जाता था।

अब देखिए न , इंदिरा के आपात काल में कांग्रेस पार्टी की तरफ से इकलौते थे जो जेल गए। जेल जाने से पहले उनके पास दो रास्ते थे एक जेल का दूसरा अपने सिद्धांतों से खिलवाड़ , लेकिन इन्होंने अपने सिद्धांतों को ज़िंदा रखते हुए जेल जाना बेहतर समझा।  उसके बाद उनके पास एक अपूर्ण राजनीतिक प्रलोभन था। उनका मानना था कि वी.पी. सिंह, जो कि उनकी नज़र में एक “पाखंडी” थे, जिसने वह प्रशंसा हथियाई थी जो उन्हें मिलनी चाहिए थी।

वे अक्सर कहते थे कि देश की राजनीति चलाने का ये तरीक़ा नहीं है कि विपक्षी दल के नेता एक दूसरे को देखना भी बंद कर दें। उन्हे इस बात कि खुशी भी हुई थी जब 2004 में चुनाव जीतकर भी “बुद्धि मानी और उदारतापूर्वक” का मुशयरा करते हुए प्रधानमंत्री न बनने का फैसला किया था। 

वह इस बात से हताश थे कि देश की राजनीति कितनी विभाजित हो चुकी थी। उन्होंने कहा कि उन्हें ठीक-ठीक पता नहीं था कि परमाणु मुद्दे पर पाकिस्तान या अमेरिका के साथ चर्चा का रुख क्या था लेकिन वह इस सरकार पर भारत के हितों के साथ-साथ अन्य लोगों की देखभाल करने का भरोसा करते थे। 

चंद्रशेखर सैद्धांतिक राजनीति के नायक माने गए है। इसलिए यदि आप भारतीय राजनीति के बारे में जानने की जिज्ञासा रखते हों तो उनसे बेहतर कोई और शिक्षक नहीं है। उन्होंने भारत के क्रम-विकास को समाजवाद से लेकर एक मुक्त बाज़ार अर्थव्यवस्था तक देखा था। 

उन्हे मुद्दों को बातचीत से हल करने का हुनर आता था वह जानते थे कि जिस तरह के समाजवाद में वह यकीन रखते हैं, वो इंदिरा के बजाय जेपी के करीब था। लेकिन वह कभी भी द्वेषपूर्ण नहीं थे।

आपने आखिर के दिनों में देश की हालात की सुधरती हालत को देखकर उन्होंने कहा था कि वह भी एक वक़्त था जब इस देश के पास विदेशी मुद्रा भंडार इतना कम था कि उन्हे देश का सोना गिरवी रखना पड़ा था। और आज भंडार इतना अधिक हो गया है कि उन्हे समझ नहीं आ रहा कि इसका क्या करना है। 

देश में बेंको का राष्ट्रीय-करण करके इस युवा तुर्क ने ही अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने का ठोस कदम उठाया था। चंद्रशेखर इस देश की राजनीति का शायद वो नाम है जिसने राजनीति के सभी पहलुओं को बहुत क़रीब से देखा है। उन्ही का मानना था कि देश का युवा जितना मज़बूत होगा देश भी उतना ही सुरक्षित होगा।

आज इस युग-पुरुष को सैद्धांतिक राजनीति का अंतिम नायक के रूप में याद किया जा रहा है तो इसमें कोई दो रॉय है ही नहीं है। क्योंकि उनके बाद इस देश की राजनीति को ऐसा कोई राजनेता मिला ही नहीं है जो निस्वार्थ भाव से स्वच्छ और सैद्धांतिक राजनीति कर सके। 

आज भले ही भारतीय राजनीति का यह युवा तुर्क हमारे बीच नहीं है लेकिन इनका समाजवाद ,इनकी विचारधारा आज भी देश के राजनेताओं एवं युवाओं  को एक नई दिशा प्रधान करन चाहती है बस कोई नेता , राजनेता या कोई साधारण व्यक्ति इनके सोच और विचारों को पढ़ने की कोशिश कर ले।

Tags
Show More

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Close