Opinion ZonePolitics, Law & Society
Trending

जो भी सरकार के खिलाफ है उसको देश की मीडिया विलेन के रूप में पेश कर रही हैं -गिरिजा शंकर सिंह

आज जो सरकार के खिलाफ है उसको मीडिया विलेन के रूप में पेश कर रही हैं इसके भी कारण है जिस पूंजी के खिलाफ पिछले 70 वर्षों से उनकी राजनिति हमलावर रही है वहीं पूंजी मीडिया को नियंत्रित भी करती है। वही पूंजी मीडिया का प्रखर स्वर तय करती हैं। दिल्ली और देश के स्तर पर उस पूंजी के मालिक ही फैसला किया करते हैं कि किस राजनीतिक धारा व्यक्ति या संगठन और मुद्दों को हमें प्राथमिकता देनी है और किन लोगों को हमें हाशिए पर रखना है।

मीडिया के दिग्गज सरकार को पत्रकारों को सांसद बनाने की मुहिम हो या अखबारों को फाइनेंस करा कर के अखबार निकलवाने का चलन हो या चैनल में अपने प्रभाव दखल बढ़ाने की प्रतिस्पर्धा हो इन सब चीजों में मीडिया हाउस का अपने हिसाब से निर्णय करवाने की क्षमता और सरकार का दिवालियापन अंदाज जनता के प्रति अति असंवेदनशीलता आज के समय में सोचने पर विवश करती है ।।

14 फरवरी का दिन था नरेंद्र निकेतन को शहरी विकास मंत्रालय के द्वारा बिना किसी नोटिस के ध्वस्त करा दिया गया उस समय देश की मीडिया पूरी तरीके से मौन और शांत थी इतने बड़े समाज का यह समाजवादी चिंतन के केंद्र को बल पूर्वक गिराया गया, जिसको पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखरजी ने अपने हाथों से सजाया था सवारा था बहुत सारी पांडुलिपिया थी जिनमे इतिहास की धरोहर थी उन्हें निकालने तक का मौका नहीं दिया गया था। परंतु सनद रहे यह जो भी कृत्य किए गए थे वह तत्कालीन भाजपा सरकार मैं शहरी विकास मंत्री के निर्देशों पर किए जा रहे थे और यह कार्रवाई पूर्ण रूप से बदले की कार्रवाई थी क्योंकि 30 जनवरी को उसी नरेंद्र निकेतन में देश के सभी विपक्षी दलों के नेताओं का एक सम्मेलन हुआ था जिसमें यह निर्धारित किया गया था कि निरंकुश सरकार के खिलाफ पूरे देश में हम आंदोलन चलाएंगे और उस आंदोलन की रूपरेखा उसी नरेंद्र निकेतन से तय हो रही थी, भारत सरकार के मंत्री सकते में थे उन्हें नरेंद्र निकेतन के वैचारिक केंद्र से डर के साथ असुरक्षा महसूस हो रही थी फलस्वरूप डरपोक सरकार की बदले की मनसा ने आचार्य नरेंद्र निकेतन के स्मृति स्थल और समाजवादी जनता पार्टी चंद्रशेखर के राष्ट्रीय कार्यालय को गिरा दिया था

तब मीडिया कहां थी पिछले 1 महीने से देश की प्रमुख मीडिया संस्थानों के द्वारा केवल अनावश्यक चीजों पर वाद विवाद और समाचार दिखाए जा रहे हैं महाराष्ट्र सरकार के द्वारा कंगना राणावत फिल्म अभिनेत्री के ऑफिस का एक कोने का हिस्सा गिरने के कारण पूरे देश की तथाकथित मीडिया [सरकार के हाथों बिकी हुई ]इसको अपना मुख्य आकर्षण का केंद्र बनाए हुए हैं और इस पर भिन्न भिन्न प्रकार की डिबेट चलाए जा रहे हैं क्लिपिंग दिखाई जा रही है आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? क्योंकि बिहार में चुनाव है और जो राष्ट्रीय मीडिया वह चंद लोगों के हाथ की कठपुतली है और सरकार के इशारे पर अन्य मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए केवल इस प्रकार के कृत्य किये जा रहे हैं

फिल्म अभिनेत्री कंगना राणावत का ऑफिस टूटना उसकी स्वाभाविक परिणति है, जो पिछले छह साल में इस देश में हुआ है। मोदीजी के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत की सरकार आने के बाद पहला काम ये हुआ कि आरएसएस के लोग खुलकर मैदान में आ गये। इन लोगों ने गलत कृत्यों का खुलकर समर्थन किया, डंके की चोट पर। मीडिया भी इनके ही अंदाज में गलत को सही साबित करने के लिए कुछ भी करके मिर्च मसाले के साथ चटपटे खबरें बनाती रही ।

गलत को गलत कहने का साहस जिसने जुटाया, उसे सीधा देश विरोधी और देशद्रोही और क्या क्या नहीं बताया गया।

मानवीय सिद्धांत ये है कि हमें हर हाल में गलत का विरोध करना चाहिए। अगर इतनी हिम्मत नहीं है, यदि सच बोलने से किसी स्वार्थ की सिद्धि में बाधा आती है, तो हमें चुप हो जाना चाहिए। गलत का समर्थन करना अपराध है। और हमारे देश की टेलीविजन मीडिया इसका भारतीय लोकतंत्र की अपराधी है। जब सरकार कुछ गलत करती है और उसे अपने गलत के समर्थन करने वाले भी मिल जाते हैं, तो इससे सरकार की क्रूरता बढ़ती ही है और सरकार निरंकुश हो जाती है जिसका अनुभव देश के हर एक कमजोर दलित किसान मजदूर को हो भी रहा है।

हम यह पूछना चाहते हैं देश के तमाम पत्रकारों से कि आज जो लोग कह रहे हैं कि लोकतंत्र की हत्या हो गई महाराष्ट्र में जब नरेंद्र निकेतन गिराया गया था तब क्या लोकतंत्र की मर्यादा को बढ़ाया गया था? तब क्या लोकतंत्र की हत्या नहीं हुई थी? और तब आपका जमीर कहां था तब आप कहां सोए हुए थे।

आप सभी जानते है नरेंद्र निकेतन गिराया गया बल पूर्वक वो भी सरकार के दवारा — देश की राष्ट्रीय मिडिया चुप जैसे देश में कुछ हुआ ही नहीं है ?

गुजरात के आईपीएस संजीव भट्ट को गलत तरीके से जेल में डाला गया, अहमदाबाद का उनका मकान गिरा दिया गया. क्या इसका सभी लोगों को विरोध नहीं करना चाहिए था?

सुधा भारद्वाज सहित एक दर्जन मानवाधिकार कार्यकर्ता जेलों में डाल दिए गए. क्या इसका विरोध सबको नहीं करना चाहिए था?

बंगाल के सारदा घोटाले में केंद्र सरकार ने खुद सीबीआई जाँच का आदेश दिया. कोलकाता के पुलिस कमिश्नर को गिरफ्तार करने सीबीआई भेज दी. वहां सीबीआई का विरोध हुआ, तो सीआरपीएफ भेज दी. क्या यह सब सही था. क्या इसका सबने विरोध किया, नहीं. ?

डॉक्टर कफील खान को भड़काऊ भाषण देने के आरोप में जेल में डाला गया. निचली अदालत ने उन्हें जमानत दे दी, तो उन्हें रासुका लगाकर जेल में फिर पटक दिया गया. क्या यह सही था. नहीं. क्या सबने इसका विरोध किया, नहीं

यदि आपको लगता है कि सुशांत सुसाइड केस को जो मोड़ दिए गए, सुसाइड के लिए उकसाना, नेपोटिज्म, रिया पर तरह तरह के आरोप, फिर सुसाइड को हत्या में बदलने की कोशिश और अंत में मामले को ड्रग पर लाकर टिका देना, ये सब सही था.?

यदि आपको लगता है कि सुशांत मामले में मीडिया का रोल ठीक है और कंगना ने जो बदतमीजियां की हैं, वे सही हैं, तो माफ कीजिये, आपको कंगना का ऑफिस टूटने पर स्यापा करने का कोई अधिकार नहीं है। ये अधिकार केवल उन्हीं को है, जो हर गलत काम के खिलाफ खड़े होते हैं. हम कंगना राणावत , शत्रुघ्न सिन्हा का रामायण , कपिल मिश्रा का दफ्तर , दिल्ली की 48000 परिवार जो झुगियों में है सहित उन तमाम लोगों के आसियाने को या किसी ऑफिस को तोड़ने वाली सरकारी मशीनरी की हरकत की कड़ी निंदा करते हैं। आखिर बनने ही क्यों देते है जब वो कानूनन सही नहीं थे।


श्री गिरिजा शंकर सिंह
लेखक श्री गिरिजा शंकर सिंह समाजवादी चिंतक व समाजवादी जनता पार्टी चंद्रशेखर के दिल्ली प्रदेश के मुख्य महासचिव है , लिखे गए तथ्य उनके निजी विचार है था theजनमत इसके लिए उत्तरदायी नहीं है।   
Tags
Show More

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Close