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इतिहास के पन्नों में अमर है देश के युवा तुर्क, लोकनायक एवं दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री स्व “श्री चंद्रशेखर जी” की जीवनगाथा।

आज भारत की राजनीती की हालात फिर उस भ्रष्ट कीचड़ की तरह हो चुकी है जो उस समय थी पर अफ़सोस अब चंद्रशेखर जैसी शख्सियत नहीं है जो इस दलदल से कमल की तरह उपजे और लोकतंत्र को सुथरा करे । देश के लोकतंत्र और जनता को आज भी इनकी कमी खलती है क्योकिं ऐसे लोकनायक सदियों में कहीं एक बार पैदा होते है।

दोस्तों भारत देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकताँत्रिक देश माना जाता है। यूं तो इस देश के लोकतंत्र को मज़बूत बनाने के लिए न जाने कितने ही नेता संसद भवन में आये और चले गए ।

इनमे कुछ वक़्त के तराज़ू के भारी पलड़े में रहे तो कुछ नदी के भाव के साथ बहते चले गए,कई सिर्फ केमरे पर ही जनता को अपना मानते रहे, तो कई सिर्फ कुर्सी की महिमा ही गाते रहे, कईं थे जो देश के विकास में लगे ,तो कईं अपने कार्यों से जनता के दिलों में बसे।

जहां देश में एक समय राजनीती का दलदल गाढ़ा हो रहा थी वहीं “चंद्रशेखर” नाम का कमल इस राजनीति में अपनी एक अलग पहचान बना गया था जिनका नाम भारतीय लोकतंत्र एवं राजनीती में आज भी उसी आदर के साथ लिया जाता है जैसे उस समय लिया जाता है।

बचपन और शिक्षा-

युवाओं को एक नयी राह और भारतीय राजनीती को को एक नया मोड़ देने वाले इस युगपुरुष का जन्म 17 अप्रैल 1927 पूर्वी उत्तरप्रदेश के बलिया जिले के इब्राहिमपट्टी में रहने वाले एक कृषक राजपूत परिवार में हुआ। ये बचपन से ही अपने देश की मिटटी से एक निस्वार्थ भावना से जुड़े हुए थे। 

बताया जाता है कि इनकी प्ररम्भिक शिक्षा भीमपुरा के राम करन इण्टर कॉलेज में हुई। इनको शुरू से ही अध्ययन में रूची थी. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अपनी “एमए” की डिग्री पूरी करने के बाद राजनीती प्रवेश किया। कहा जाता है कि विद्यार्थी राजनीति जीवन में इन्हे एक “फायरब्रान्ड” के नाम से जाना जाता था। ये राष्ट्रपति महात्मा गांधी के जीवन से बहुत प्रभावित थे। शायद इसलिए ही देश के प्रति इनकी भावना हमेशा से ही समाजवादी विचारों की रही। इनका मानना था की सत्य एक ऐसा अस्त्र है जिससे हर युद्ध में विजय हासिल की जा सकती है। 

राजनीती और चंद्रशेखर जी-

कहतें है कि चंद्रशेखर जी अपने बाल्य काल से ही रजनीती क्षेत्र में बहुत रूची रखते थे। अपने विद्यार्थी जीवन के पश्चात वह पहली बार समाजवादी राजनीति में सक्रिय हुए थे। जानकारी के अनुसार सन 1951 में युवा चंद्रशेखर समाजवादी पार्टी के पूर्णत कार्यकर्ता बने। भ्रष्टाचार और भ्रष्ट लोगों के प्रति इनके तेवर शुरू से ही बड़े तीखे रहे जिसके कारण ये तमाम भ्रष्ट लोगों की नज़रों में खटकते रहे। 

उनकी जीवन यात्रा का एक वाक्य याद आता है कि एक बार चंद्रशेखर गुरु आचार्य नरेंद्र देव को आमंत्रित करने इलाहाबाद गए,आचार्य बीमार थे,इसलिए कहा गया कि चंद्रशेखर के साथ आचार्य जी के बदले लंबरदार “राम मनोहर लोहिया” जायेंगे लेकिन लोहिया जी को किसी कारण कलकत्ता जाना था इसपर चंद्रशेखर जी ने उन्हे कहा कि बलिया से वो उन्हे जीप से रेल तक छोड़ आएँगे।

 लोहिया साहब ने बलिया पहुंचते ही सवाल पूछना शुरू कर दिए  चंद्रशेखर जी ने कहा कि आपको शाम को जाना है सारा इंतज़ाम हो चुका आप गेस्ट हाउस तो चलिए। लोहिया जी ने गेस्ट हाउस पहुंचते ही फिर वही सवाल ज़रा भड़के हुए अंदाज़ में पूछा जब चंद्रशेखर जी को लगा कि पानी सर से ऊपर जा रहा है तो उन्होंने उसी अंदाज़ में जवाब देते हुए कहा कि “वो रही जीप और वो रहा रास्ता” यूं बेइज़ती ना करे। शायद ये पहला मौका था जब किसी युवा ने लंबरदार की बात का प्रतिकार किया था। 

पार्टी टूटी तो चंद्रशेखर जी कांग्रेस में चले गए और  युवा तुर्क कोटरी का हिस्सा बन गए। पार्टी में आने के बाद उन्होंने 1971 में बैंकों का राष्ट्रीकरण किया,समाजवाद का नारा दिया,और गरीबी हटाओ पर पुरज़ोर बल दिया जिसके चलते तत्काल प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ओल्ड गार्ड की लुटिया डुबोई .

पर चंद्रशेखर की समाजवादी सोच और बेखौफ सच बोलने निष्ठा यहां भी बनी रही। जिसका नतीजा ये हुआ की इंदिरा गाँधी का मतलब निकल जाने के बाद 1975 में इमरजेंसी में इन्हे भी कारावास का दरवाज़ा दिखा दिया गया था ,शायद इंदिरा भाँप गयी थी ये सत्य का पुजारी उनकी राह में कंकर न होकर एक बड़ा पहाड़ बनने वाला है

चंद्रशेखर उस समय कांग्रेस के अकेले ऐसे नेता थे जिन्हे जेल का रास्ता स्वयं कांग्रेस द्वारा ही दिखाया गया था। “विनाश काले -विपरीत बुद्धि”, सही ही तो कहा था उस समय चंद्रशेखर जी ने। पटियाला जेल में 19 महीने तक “बाबू-साहब” ने (चंद्रशेखर जी) कलम के हथियार से आंदोलन  किया । 

इमरजेंसी हटी तो चंद्रशेखर वापस आए और विपक्षी दलों द्वारा बनायी गयी जनता पार्टी के अध्यक्ष बने। जब उनकी पार्टी सरकार बनी तो उन्होंने मंत्री बनने से ही मना कर दिया। ज़ाहिर इस शख्सियत को कुर्सी का कोई लाभ नहीं था। दिल में निस्वार्थ भाव और सत्य का साथ ही इनकी शक्ति थी।

 भारत को अच्छी तरह से समझने की कोशिश करते हुए उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी की तरह जनवरी 1983 को दक्षिण कन्याकुमारी से लेकर राजधानी दिल्ली के राज-घाट तक पदयात्रा की, जिसे बाद में भारत यात्रा भी कहा गया। 4200 किमी.की यह यात्रा 25 जून 1983 को समाप्त हुई। इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों की समस्याओं ,असमानताओं,और जातिवाद जैसी कुरीतियों को समाप्त करना था। 

प्रधानमंत्री पद,चंद्रशेखर और सात महीने-

साल 1999 को चंद्रशेखर जी कांग्रेस के समर्थन से देश के 11वे प्रधानमंत्री के रूप में दुनिया के सामने आये। लेकिन उन्होंने अपने भाषणों में ज़ाहिर कर दिया था कि वे किसी की कठपुतली बनके काम नहीं करने वाले। जिससे कांग्रेस के कुछ नेता जल भुन गए। इसके बाद “वी०पी” सिंह ने जनता दल से अलग “समाजवादी पार्टी” बना ली। जिसमें चंद्रशेखर जी को भारतीय जनता पार्टी से बहुमत मिला जोकि उस समय राजीव गाँधी को बहुत ज़्यादा खल गया। परिणामवश कांग्रेस पार्टी ने चंद्रशेखर जी की सरकार से बहुमत वापिस ले लिया और मार्च 1991 में उनकी सरकार को इस्तीफ़ा देना पड़ा।

कहा जाता है कि बाद में कई बार चंद्रशेखर जी को पुनः प्रधानमंत्री पद के लिए निमंत्रण आते रहे और उन्हे कहा गया कि वे कैबिनेट कांग्रेस के नेताओं को शामिल करें। लेकिन उनका वही पुराना बेबाक,युवा तुर्क अंदाज़,जीवन के आदर्श और उसूलों ने उन्हे ये काम करने से मना कर दिया। 1991 बाद भी उन्हे बलिया की जनता का प्रेम मिलता रहा और वो लोकसभा का चुनाव जीतते रहे। 

एक लेखक और रचनाएं –

चंद्रशेखर जी ने अपने विचारों को कलम के सुनहरे पंखों से एक नयी उड़ान दी और अपने लेखन के ज़रिये राजनीती और समाज से जुड़े मुद्दों को जनता के सामने रखा। इस युगपुरुष की शैली इतनी तीव्र थी कि किसी में भी उनका विरोध करने का सामर्थ्य नहीं था।

 इन्होने “यंग इंडिया” नाम के समाचार पत्रिका का संपादन किया जिसमे यह जनता को जागरूक करने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे। इनका मानना था कि जब तक देश का हर तबका ,हर वर्ग ,हर समुदाय का नागरिक विकास के क्षेत्र में नहीं आएगा तब तक इस देश का विकास संभव नहीं है। 

आपातकाल के दौरान इन्होने अपनी जेल यात्रा को एक डायरी में संजोकर रखा जो बाद में जनता के रूबरू “मेरी-जेल” नाम से हुई । इन्होने  “डायनमिक्स ऑफ चेंज” की पुस्तक की भी रचना की ,जिसमे इनके “यंग इंडिया” के अनुभव और इनके विचारों को संभाल कर रखा गया है। सरकार गिरने के बाद चंद्रशेखर जी ने भोंडसी में अपने आश्रम को अपना निर्वाह स्थान बना लिया जहा इनकी पार्टी के अलावा विपक्ष के नेता भी इनसे राजनीती मशवरों के लिए आते थे। 

मृत्यु-

बताया जाता है कि अपने अंतिम दिनों में चंद्रशेखर जी “मल्टिपल मायलोमा” (एक प्रकार का प्लाज्मा कोष कैंसर) से ग्रस्त थे। स्वस्थ में ख़राबी होने की वजह से उन्हे 3 मई को 2007 को दिल्ली के अस्पताल में भर्ती करवाया गया और 8 जुलाई 2007 को इस महान युगपुरुष ने इस देश ,इस दुनिया को हमेशा हमेशा के लिए अलविदा कह दिया।  80 वर्ष की आयु में भी इस युगपुरुष के हिर्दय में जनता प्रेम और देश में समाजवाद को बढ़ावा देने चाह थी। 

सन 1995 को इन्हे “आउटस्टैण्डिंग पार्लिमेन्टेरियन अवार्ड” से नवाज़ा  गया था। कईं लोगों का मानना है कि चंद्रशेखर जी ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्हे इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 

चरित्र के धनी ,विचारों के धनी ,युवा तुर्क अंदाज़ , सत्य बोलने का बेखौफ साहस रखने वाली ये शख्सियत भले ही आज हमारे बीच में नहीं है लेकिन इस देश के नौजवान ,गरीब मजदूर और आम जनता के लिये उन्होंने जो कार्य किए वो हमे हमेशा उनकी दिलाते रहेंगें। 

आज भारत की राजनीती की हालात फिर उस भ्रष्ट कीचड़ की तरह हो चुकी है जो उस समय थी पर अफ़सोस अब चंद्रशेखर जैसी शख्सियत नहीं है जो इस दलदल से कमल की तरह उपजे और लोकतंत्र को सुथरा करे । 

बहरहाल देश के लोकतंत्र और जनता को आज भी इनकी कमी खलती है क्योकिं ऐसे लोकनायक सदियों  में कहीं एक बार पैदा होते है। इसलिए हम आपसे भी अनुरोध करते एक बार इस गुणी शख्सियत की तरह सत्य की राह पकड़िए और भ्रष्टाचार का जमकर विरोध करे। हो सकता है कि अगला चंद्रशेखर आप में ही कहीं छुपा हुआ हो। 

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