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बढ़ती ग्लोबल-वार्मिंग कर देगी दुनिया भर से रोज़गार तक का खात्मा। पेट भरने के लिए आखिर क्यों ज़रूरी हो गया है पेड़ लगाना ?

संयुक्त राष्ट्र की संस्था अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आइएलओ) की ओर से जारी की गई एक रिपोर्ट दुनिया के सामने लायी गयी, जिसमे पूरी तरह से दावा किया गया है कि साल 2030 तक के आते आते दुनिया भर में करोड़ों की मात्रा में नौकरियाँ ख़तम हो जाएंगी और लोग रोज़गार की तलाश में भटकते नज़र आयेंगें। इस सदी के अंत तक पहुँचते पहुँचते इस पृथ्वी का तापमान लगभग 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने वाला है।

कहने और सुनने में बड़ा अजीब सा लगता है कि “ग्लोबल-वार्मिंग” के बढ़ने से नौकरियाँ खतरे में आ जायेगीं, या पेड़ नहीं लगाया तो हम सब भूखे मर जायेंगे। लेकिन दोस्तों अगर हम आपसे कहें कि देश और दुनिया यदि इसी वर्तमान स्तिथि के साथ ही आगे बढ़ते रहे तो आने वाले कुछ ही सालों में दुनिया भर में लाखों-करोड़ों लोगों की नौकरियाँ ख़त्म हो सकती हैं। करोड़ों की तादाद में लोग रोज़गार की तलाश में भटकते फिरेंगे,तो शायद आप यकीन नहीं करेंगे। 

जिस तरह बढ़ती महँगाई ,भ्रष्टाचार और गरीबी देश- दुनिया को दिखाई नहीं देती लेकिन हर कोई उससे ग्रस्त है ठीक उसी तरह लगातार बढ़ती हुई “ग्लोबल-वार्मिंग” देश और दुनिया के लिए एक बड़ा ख़तरा बन रही है लेकिन किसी को दिखाई नहीं दे रही। 

आपको बता दें कि हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की संस्था अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आइएलओ) की ओर से जारी की गई एक रिपोर्ट दुनिया के सामने लायी गयी, जिसमे पूरी तरह से दावा किया गया है कि साल 2030 तक के आते आते दुनिया भर में करोड़ों की मात्रा में नौकरियाँ ख़तम हो जाएंगी और लोग रोज़गार की तलाश में भटकते नज़र आयेंगें।

 ‘वर्किंग ऑन ए वार्मर प्लैनेट-द इंपैक्ट ऑफ़ हीट स्ट्रेस लेबर प्रोडक्टिविटी एंड डिसेंट वर्क’ नाम की इस रिपोर्ट में साफ़ तौर पर कहा गया है कि इस सदी के अंत तक पहुँचते पहुँचते इस पृथ्वी का तापमान लगभग 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने वाला है।

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि जिस गति से जलवायु परिवर्तन के कारण गर्मी बढ़ रही है,आने वाले 10 सालों में वैश्विक स्तर पर काम के घंटों में प्रत्येक वर्ष 2.2 फ़ीसदी की गिरावट होगी जो कि आठ करोड़ नौकरियों के ख़त्म होने के बराबर है। 

जानकारी के अनुसार पता चला है कि बढ़ती गर्मी के कारण लोग काफ़ी धीरे-धीरे काम करने को मजबूर होने वाले हैं जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था को 2400 बिलियन डॉलर से भी अधिक का नुक़सान होने वाला है। 

आपको बता दें की कि इस रिपोर्ट ने साफ़ साफ़ सुनिश्चित कर दिया है कि अगर जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए ठोस क़दम नहीं उठाए गए तो पूरी दुनिया का तापमान इस शताब्दी के अंत तक बढ़ता ही चला जाएगा. जिससे आने वाले वक़्त में दिकत्ते अधिक बढ़ जायेंगी।

बताया जा रहा है कि आने वाले 10 सालों में हमारे देश भारत को तक़रीबन 5.8 फ़ीसदी काम के घंटों का नुक़सान होने वाला है जो लगभग 3.4 करोड़ नौकरियाँ ख़त्म होने के बराबर है। 

आपको बता दें देश एक बार पहले भी इस संकट से साल 1995 में गुज़र चुका है जिसमे 4.3 फ़ीसदी काम के घंटों की हानि हुई थी। अनुमान है कि इस आने वाले संकट से हमारे देश भारत में कृषि और निर्माण क्षेत्र पर गहरा प्रभाव पढ़ने वाला है। इससे देश की जीडीपी भी को भी ख़ासा नुक्सान होने वाला है।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर भी इस संकट के पाँव जल्द ही जमने वाले है जिससे थाईलैंड, कंबोडिया, भारत और पाकिस्तान की जीडीपी को पाँच फ़ीसदी से अधिक का नुक़सान उठाना पड़ सकता है

इसके अलावा बढ़ती गर्मी स्वास्थ्य को भी खतरा लेकर आने वाली है। जिसके पीछे का सबसे बड़ा कारण पेड़ों की कटाई और बढ़ती हुई जनसंख्या बतायी जा रही है। आज दुनिया की 16% से भी अधिक आबादी सिर्फ भारत में ही है। अनुमान है कि ये आंकड़ा लगातार बढ़ता ही जा रहा है। 

रिपोर्ट कहती है यदि इस ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए ठोस कदम नहीं उठाये गए तो भविष्य में दिकत्तो का सामना कर पड सकता है। धरती का तापमान महज तीन बीते सालों के अंदर एक डिग्री से ज़्यादा बढ़ गया है और इसके आगे भी बढ़ने की आशंका जताई जा रही है।

 समय में बारिश का ना पड़ना ,दुनिया भर में भारी तुफानों का आना ,बाढ़ और सूखे के कारण मौसम का संतुलन बिगड़ना , फसलों का तबाह होना आदि। ये सब वनों की कटाई और प्रदूषण के कारण ही हो रहा है।  

इसलिए संयुक्त राष्ट्र की संस्था अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आइएलओ) कहती है यदि धरती में पेड़ों की कमी इसी तरह से बढ़ती चली गयी तो इंसान बढ़ती हुई बीमारियों और भूख के कारण मृत्यु की गोद में सो जायेगा,और यह भी संभव है कि इस पृथ्वी पर जीवन ही लुप्त हो जाये। 

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