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लॉकडाउन में भारत की अर्थव्यवस्था पर आशुतोष राय के विचार

पिछले साल जुलाई में, जब अनौपचारिक क्षेत्र में रोजगार के पी एल एफ एस आँकड़े जारी हुए , तो इन आकड़ों नें सरप्लस नौकरियां पैदा करने के सरकार के सभी दावों को खारिज कर दिया।

अध्ययनों से पता चलता है कि वर्ष 2017-18 में अनौपचारिक क्षेत्र में 40 लाख नौकरियां कम हुई , हालांकि सरकार नें 8 लाख करोड़ का ऋण देने की बात के साथ ही यह दावा भी किया कि इससे अर्थव्यवस्था को को मजबूती मिलेगी लेकिन “डिमॉनीटाइजेसन” के कारण अर्थव्यवस्था को लगा झटका इतना गहरा था कि अर्थव्यवस्था में अभी तक स्थिरता नहीं आ पाई है विकास दर घट कर 4.9 हो गई, जबकि 6 तिमाहियों में निरंतर कमी के साथ विनिर्माण विकास दर 12 प्रतिशत से घटकर 3 प्रतिशत से भी कम हो गई। उपरोक्त विवरण से पता चलता है कि जो हमारे आर्थिक हालात है उसमें, एक बहुत बड़ी आबादी को बहुत छोटी राशि ऋण के तौर पर देना, न तो नए रोजगार सृजित करने मे सहायक हो सकता है और न ही अर्थव्यवस्था को ही बेहतर बनाने में, अंततः इस पैसे का उपयोग प्रत्यक्ष उपभोग के लिए होगा न की निवेश के लिए, जैसा की सरकार का मानना है इस प्रकार यह सरकारी खजाने पर बोझ के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है।

वर्तमान में जब अर्थव्यवस्था एक महामारी का सामना कर रही है, तो ऐसे में सरकार फिर से एमएसएमई में सभी स्ट्रीट वेंडर्स के लिए 10 हजार से 50 हजार रुपये के ऋण के खोखले प्रस्ताव लेकर आई है। CMIE की हाल ही में आई रिपोर्ट के अनुसार 14 करोड़ श्रमिक महामारी में अपनी नौकरी गंवा चुके है, ऐसी स्थिति में नीति निर्माताओं को दो बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए था । पहला, सरकार आम जनता की प्राथमिक आवश्यकता को कैसे पूरा करे और जो अपनी नौकरी खो चुके हैं, जो सड़कों पर मीलों चल रहे हैं या अपने घरों में कैद है कैसे उनके लिए भोजन और पैसे की व्यवस्था करें । दूसरा, जब लॉकडाउन समाप्त होगा तब एमएसएमई, किसानों, या पटरी विक्रेताओं के लिये पूंजी की आवश्यकता होगी उसके लिए क्या इंतेज़ाम हो ।

दुर्भाग्य से, प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के लिए 30 मिनट के दिए गए संबोधन में श्रमिकों की बदहाली और रोजगार की हालत पर कुछ नहीं कहा तथा महामारी में अवसरों को खोजने में व्यस्त दिखाई दिए। ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘आर्थिक प्रोत्साहन के रूप में ’20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज जैसे भारी शब्दों के साथ, यह भाषण निश्चित ही उनके लिए सिर्फ दिखावे का अवसर था ।

यदि 20 लाख करोड़ की विस्तार में चर्चा की जाए तो उसमें, वित्त मंत्री ने जो ऋण की विभिन्न स्कीमें पेश कीं हैं और धन का विवरण दिया है वो पहले से ही बजट का एक हिस्सा है या रिजर्व बैंक द्वारा विभिन्न योजनाओं के माध्यम से प्रदान किया जा रहा है । उदाहरण के लिए, वित्त मंत्री के अनुसार, किसानों को 30,000 करोड़ रुपये की कार्यशील पूंजी की सुविधा पहले से ही उपलब्ध है जो नाबार्ड द्वारा पहले से उपलब्ध कराए गए 90,000 करोड़ रुपये के अतिरिक्त प्रदान की गयी है । योजना के तहत उन्होंने किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से 2.5 करोड़ किसानों को लोन की सुविधा मुहयिय्या कराने को कहा, लेकिन अर्थव्यवस्था में नया पैसा नहीं है, ज्यादातर पैसा पहले से ही अर्थव्यवस्था में है और शेष ऋण है। स्ट्रीट वेंडर्स के लिए स्कीम पर गौर किया जाए तो, सरकार ने 50 लाख पटरी कारोबारियों के लिए 10 हजार रुपये के ऋण की घोषणा की है , जो की कुल 5000 करोड़ रुपये है। यह निश्चित रूप से उन गरीब विक्रेताओं को मुआवजा नहीं है जो महामारी में पीड़ित हैं । 10 हजार रुपये ऋण लेने का खर्च वास्तविकता में 10 हजार से अधिक ही होगा । और सरकार कम से कम इससे अनभिज्ञ तो नहीं है। इसके अलावा आर बी आई द्वारा एमएसएमई के मदद के लिए 3.5 लाख करोड़ की ऋण योजना पहले ही घोषित की जा चुकी है, वित्त मंत्री द्वारा उसे भी 20 लाख करोड़ की महामारी राहत में शामिल किया ।

अब तक तीन किश्त की घोषणा के साथ सरकार ने राहत के रूप में केवल 5000 करोड़ रुपये की राशि दी है। इसके अलावा सभी घोषणाएं या तो बजट का हिस्सा हैं या तो ऋण योजनायें । और किस अर्थशास्त्र में ऋण को एक आर्थिक राहत पैकेज कहा जाता है, मुझे नहीं पता, लेकिन मैं ये कह सकता हूँ कि “आत्मानिर्भर भारत बनाने का यह तरीका भारत को एक कर्जदार भारत बना देगा जो हमेशा ऋण के जाल में फंसा रहेगा ।”

सरकार की घोषणा में उन श्रमिकों के लिए किफायती आवास की व्यवस्था भी शामिल है जो शहरों को छोड़ रहे हैं । क्या सरकार उन्हें मुफ्त आश्रय देने में सक्षम नहीं है ? यह समय एक लोकतांत्रिक सरकार द्वारा उदारता दिखाने का है न कि बेशर्मी का ।


सरकार को पहले अपनी प्राथमिकताएँ निर्धारित करनी होंगी । वर्तमान में आवश्यक है कि, गरीब लोगों के हाथ में उनकी आजीविका चलाने के लिए प्रत्यक्ष धन हस्तांतरण किया जाए । और उसके बाद में उनके जीवन को स्थिर करने के लिए विभिन्न रोजगार गारंटी योजनाओं में उनका समायोजन किया जाए । इसके अलावा संकट से निपटने के लिए कई कदम उठाने की आवश्यकता है, जिस पर हम बाद में चर्चा करेंगे, लेकिन सरकार को कम से कम इस पर ध्यान देना चाहिए । मैं इस लेख को इस सुझाव के साथ समाप्त कर रहा हूं कि महामारी को एक अवसर बनाना बंद कर दें, क्योंकि महामारी उन लोगों के लिए एक अवसर हो सकती है जो सिस्टम के भीतर एक आधिकारिक हिस्सा रखते हैं, लेकिन यह जनता के लिए पीड़ा मात्र है 

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