आज ही के दिन १७ मई १९३४ को पटना के अंजुम इस्लामिया हॉल में समाजवाद की सियासी बुनियाद आचार्य नरेन्द्र देव जी की सरपरस्ती में रखी गई थी।
३१ अक्टूबर १९७८ को समाजवादी नेता अरुणा आसफ अली ने दिल्ली के आई टी ओ स्थित पुलिस मुख्यालय/ जमीयत उलेमा ए हिंद की मस्जिद (पश्चिम), दिल्ली कब्रिस्तान (उत्तर), इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन (पूरब) विक्रय कर भवन ( दक्षिण) की
चौहद्दी पर निर्मित समाजवादी अध्यन केंद्र नरेन्द्र निकेतन की बुनियाद रखी गई थी !
जिस समाजवादी विचारों की स्थापना पटना के अंजुम इस्लामिया हॉल में १७ मई १९३४ को हुई थी उसी सोच को तब से लेकर अबतक के सभी समाजवादी विचारों से जुड़े दस्तावेजों के संग्रह का केंद्र रहा नरेन्द्रनिकेतन नामक ये स्थान।
देश के प्रथम समाजवादी प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर जी ने अपने गुरु आचार्य नरेन्द्र देव जी के नाम पर निर्मित इस नरेन्द्र निकेतन में १९३४ से अबतक के सभी सफ़र की गाथा को संभाल कर रखा था।
पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी के जीवन तक ये स्थान न सिर्फ़ समाजवादियों के लिए बल्कि सत्ता, विपक्ष, मीडिया, साहित्य समूहों के लिए आकर्षण का केंद्र बना रहा।
देश के सभी बड़े राजनेताओं, पत्रकारों, साहित्यकरों, बुद्धिजीवियों और विशेषकर समाजवादी विचारों वाले नेताओं,कार्यकर्ताओं, समर्थकों, शुभचिंतकों के चिंतन का केंद्र बना रहा नरेन्द्र निकेतन।
यहीं से पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी समाजवादी जनता पार्टी (सजपा) का संचालन जीवन के अंतिम दिनों तक करते रहे।
२००७ में चंद्रशेखर जी के देहांत के बाद सजपा का संचालन पूर्व केन्द्रीय मंत्री #कमलमोरारका जी द्वारा इसी नरेन्द्र निकेतन से किया जाने लगा।
२००७ से २०१५ तक नरेन्द्र निकेतन नाम मात्र के लिए रह गया था । इस बीच चन्द्रशेखर जी के विचारों में आस्था रखने वाले कुछ भूले बिसरे लोग सजपा के नाम की रट लगा लगाकर थक से गए थे कि २०१६ में सजपा को पुनः सक्रिय बनाने की मंशा से कुछ निष्ठावान #चन्द्रशेखरवादीयों के प्रयासों से नरेन्द्र निकेतन रौशन होने लागा। देशभर के समाजवादी विचारों वाले लोग नरेन्द्र निकेतन को अपनी आस्था का केंद्र मानते हुए हुंकार भरने लगे।
समाजवाद और चन्द्रशेखर जी के विचारों के #ध्वजवाहक के रूप में कई लोग नरेन्द्र निकेतन से सत्ता को ललकारने और वैकल्पिक राजनीति स्थापित करने की नाकाम कोशिश में दिन रात एक किए हुए थे।
इसी बीच २१ मई २०१७ को सजपा का राष्ट्रीय खुला अधिवेशन इसी नरेन्द्र निकेतन में आयोजित किया गया जिसमें राष्ट्र के समकक्ष चुनौतियों से निपटने के लिए रूप रेखा तय किया गया और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की ज़िम्मेदारी पुनः कमल मोरारका को विधिवत सुनिश्चित किया गया। नरेन्द्र निकेतन चन्द्रशेखर अमर रहें के नारों से गूंज उठा। समाजवादियों में ऊर्जा का संचार बहुत तेज़ी से होने लगा। देशभर में फैले चन्द्रशेखर जी के शिष्यों को अपना शेष जीवन जीने का मकसद सजपा के विस्तार में दिखाई देने लगा। देशभर के ऊर्जावान युवा सोशल मीडिया पर सक्रिय हुए और चन्द्रशेखरमय होने लगी युवापीढ़ी।
लेकिन तभी ऐसा महसूस होने लगा कि पार्टी के संचालन की ज़िम्मेदारी निभा रहे लोग अपने घर को बनाने संवारने सजाने की बजाए सेक्यूलर खेमे में एकता बनाने और अपने दल को नाम मात्र के लिए जीवित रहने की कोशिश में लगे हैं। कार्यकर्ताओं में निराशा स्वाभाविक था। २०१९ के लोक सभा चुनाव में सजपा ने चुनाव नहीं लड़ा।
युवा तुर्क चन्द्रशेखर के विचारों को आत्म सात किए कार्यकर्ताओं में निराशा तो ज़रूर हुई लेकिन
चन्द्रशेखरमय हुए सजपाई दिन रात अपने लीडर के निर्देशों की राह देखते रहे।
जो नरेन्द्र निकेतन कभी सत्ता का केंद्र बिंदु था उसी नरेन्द्र निकेतन में सुबह शाम सजपाई सिपाही अपने आदर्श पार्टी संस्थापक पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की लगी तस्वीर के सामने बेबसी के आलम में नम आंखों से टक टकी लगाय मन ही मन में हज़ारों सवाल करते रहे।
कई बार मैंने खुद महसूस किया कि जैसे चुपके से चन्द्रशेखर जी ने हमें इन विपरीत परिस्थिति में धैर्य से काम लेने का कोई मंत्र सीखा दिया हो।
कई बार मैं जल्दी सजपा मुख्यालय नरेन्द्र निकेतन के उस कमरे में आ जाता जिसमे चन्द्रशेखर जी बैठते थे । वहां मौजूद उनकी कुरसी मेज़ और सामने उनकी तस्वीर को गौर से देखता। विश्वास कीजिए शीशे में कैद तस्वीर ने बहुत कुछ ऐसे गुण सिखाए जिससे सहयोग, सहमति, समन्वय, स्वदेशीऔर स्वालंबन के मूलमंत्र से राष्ट्र को नई दिशा दिखाई जा सकती है।
कुछ दिनों से ये कक्ष पार्टी के बड़े नेताओं के लिए खुलता था लेकिन वहां कभी अपनी पार्टी सजपा को आगे बढ़ाने की कोशिश तक नहीं होती। इस प्रकार निराश होकर सजपा में आस्था रखने वाले संकल्पित , निष्ठावान और आशावादी लोगों का आना जाना लगभग समाप्त होता गया नरेन्द्र निकेतन में।
इसी बीच कुछ खाए पिए अघाए लोग आ धमके जिनके दिल दिमाग में ना ही कभी समाजवाद था और ना ही चन्द्रशेखरवाद।
दम तोड़ती चन्द्रशेखरवाद की मशाल लेकर देश बदलने के लिए संकल्पित लोग निराश होकर शांत बैठ गए। इधर नरेन्द्र निकेतन को अपनी निजी संपति मानकर दिग्गजों में उठा पटक शुरू हुई जिससे अंजान सजपाई जय चन्द्रशेखर का नारा सोशल मीडिया पर ही बुलन्द कर कोई विकल्प पर आत्मचिंतन करने में जुटे थे तभी सरकारी तंत्र ने समाजवादियों के आस्था के केंद्र नरेन्द्रनिकेतन को १४ फरवरी २०२० को बुलडोजर से ज़मीनदोज़ कर दिया।
चन्द्रशेखर जी के सियासी वारिसों का चमन उजड़ गया। आचार्य नरेन्द्र देव जी के विचारों का केंद्र जिसमे १९३४ से लेकर २०२० तक के कई दौर के किस्से, गाथा, दस्तावेज़, किताबें और भारतीय राजनीति को नई दिशा देने वाले हज़ारों चिट्ठियां, मंत्र, संवाद वाहक रिश्तों की कसौटी और ना जाने क्या क्या दफन था समाप्त हो गया।
इस प्रकार नम आंखों से चन्द्रशेखरवादियों ने अलविदा कहा नरेंद्रनिकेतन को। परंतु ध्यान रहे जो भी लोग यह समझ रहे है कि वो चन्द्रशेखरवाद या समाजवाद को खत्म कर देंगे उनको यह चेतावनी है एक एक चन्द्रशेखरवादी हजारों पर भारी है।