ईश्वर अगर कहीं है तो विकास शर्मा की आत्मा को शांति दे और अपने श्री चरणों में स्थान दे।
गीता का एक सार वाक्य है ,इस दुनिया में सब कुछ नश्वर है, आप पूछेंगे कि इस तस्वीर का गीता के सारांश क्या संबंध है तो मेरा भावार्थ यह कि मनुष्य ने जिस चीज को भी बनाया है वह सब नष्ट हो जाता है ,इतिहास का अगर ठीक ढंग से आप अध्ययन करेंगे तो यह पाएंगे कि राजा महाराजाओं के जागीर ,जमीदार, राज्य सब नष्ट हो गए।
इतिहास साक्षी है कि हर दौर में जो संपत्ति वाले लोग रहे हैं उनके समक्ष एक समय आया है कि जब वह अपनी संपत्ति को खतरे में पाए हैं और उस संपत्ति को बचाने के लिए अपनी आत्मा, अपनी मानवता, यहां तक कि प्रकृति द्वारा निष्पादित सत्य को भी लोग नकार देते हैं, बावजूद उसकी संपति बची नहीं, आप प्रभु श्री राम को भी उदाहरण में ले सकते हैं, श्री राम के साथ कोई राजा महाराजा नहीं खड़ा हुआ , यहां तक कि अयोध्या से भरत और शत्रुघ्न भी रावण के खिलाफ निर्णायक युद्ध में श्री राम की तरफ से भाग लेने नहीं आए , वानर पक्षी जिनकी गिनती मनुष्य की श्रेणी में नहीं है, यही राम के साथ उनकी बनायी हुई सेना थी ,अर्थात उस समय भी रावण के खिलाफ युद्ध करने की क्षमता किसी संपत्ति वान राजा मे नहीं थी ,दूसरा उदाहरण आप राणा प्रताप का ले लीजिए ,महाराणा प्रताप के साथ भी कोई राजा खड़ा नहीं हुआ , उनके साथ खड़े हुए लोग भामाशाह कोल भील तथा उनका सेनापति हकीम खां सूरी था, जबकि अकबर की सेना का सेनापति स्वयं मानसिंह था जो एक राजा था , तथा चाहे राम हो या महात्मा बुद्ध जिन्होंने संपत्ति को सिद्धांतों के लिए छोड़ा वह भगवान की श्रेणी में खड़ा हुए, गांधी भी महात्मा की श्रेणी में इसीलिए खड़े हुए कि उन्होंने निजी महत्वाकांक्षा का त्याग कर दिया गांधी के मरने के बाद भी कोई यह नहीं कह सकता है कि गांधी अपने नाम पर एक दो फूल भी रखे थे गांधीनगर हजार साल पहले पैदा हुए होते तो महज महात्मा नहीं वह पैगंबर या भगवान कहे जाते।
आज टेलीविजन चैनल रिपब्लिक भारत भी सत्ता के साथ उसी रूप में खड़ा हुआ है और खुद अपनी ही उस जनता की मुखालफत कर रहा है जिसके दम तो टीआरपी बटोरता है।
यह अलग बात है इसमें एक पूरा खेल हुआ और उसने गठजोड़ बना , जिस साथ गठजोड़ बनाया वह अभी भी जेल में है, बावजूद उसके उसकी टीआरपी सत्य सिद्ध नहीं हुई।
अलबत्ता वह कानून के नजर में कागजों में उसको सही सिद्ध करने की कोशिश किया लेकिन वह भी सत्य सिद्ध नहीं हो सका।
कानून मनुष्यों का बनाया हुआ है और इतिहास साक्षी है कि मानव सभ्यता के अपने विकास ने समय-समय पर अपने कानूनों को भी बदल दिया है।
इसका अर्थ यह है कि कानून लोगों की सेवा के लिए है लोग कानून की सेवा के लिए नहीं है, और जो लोग मानवता के पक्ष में खड़ा होकर कानून की मुखालफत कर देते हैं असल में सच्चे अर्थों में वही मानवता के सेवक होते हैं , मनुष्यता के सेवक होते हैं , कानून निष्प्राण चीज होती है मनुष्य प्राण महान जीव है , इसलिए मनुष्यता और मनुष्य का या धर्म है कि वह खुद को प्राणवायु के सेवा में लगाए।
यह तस्वीर रिपब्लिक भारत के एंकर विकास शर्मा की है, विकास शर्मा को कागजी तौर पर तो मैं पत्रकार मान सकता हूं , लेकिन व्यवहारिक जिंदगी में वह पत्रकार नहीं थे।
विकास शर्मा टेलीविजन चैनल पे खड़ा होकर उसी निष्प्राण वान वस्तु की सेवा करते रहे , असल में वह जानते थे कि जिसकी सेवा वह कर रहे हैं वह गलत है, पर उनकी इस सेवा के पीछे भी उसी संपत्ति की लालसा रही, तीन-चार दिन पहले जब वह टेलीविजन चैनल पर राकेश टिकैत को डकैत कह रहे थे , और धरने पर बैठे हुए लाखों किसानों को आतंकवादी कह रहे थे, उस धरने में 170 से अधिक शहादत पा चुके नौजवान से लेकर बुजुर्ग किसानों तक के लिए संवेदना के लिए एक शब्द नहीं थे , यह निश्चित ही मनुष्य का गुण नहीं हो सकता , उस दिन वह नहीं जानते थे कि अगले ही क्षण उनकी मृत्यु हो जाएगी।
जिस संपत्ति या जिस लालसा के लिए वह अपनी आत्मा के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं वह सब कुछ उनको छोड़कर जाना पड़ेगा विकास शर्मा इस सत्य को भी भूल चुके थे कि मृत्यु निर्विवाद सत्य है।
दक्षिण पंथ ने व्यक्ति की मृत्यु पर लोगों को खुश होना सिखाया है यही पंथ संपत्ति रक्षा के लिए नरसंहार को भी जायज ठहराता है इसलिए दक्षिण बंद के साथ मनुष्यता नहीं होती।
मुझे निश्चित विकास शर्मा के मृत्यु एक शाश्वत सत्य के रूप में लेता हूं और मनुष्य का ज्ञान है यह दुखद होता है मेरा उनसे कोई निजी संबंध नहीं था इसलिए यह मेरी व्यक्तिगत क्षति भी नहीं है।
लेकिन मैं एक व्यक्ति की मृत्यु का उपहास नहीं उडा़ सकता जिस प्रकार अरनव गोस्वामी उसकी टीम तथा रिपब्लिक भारत चैनल जो पूरी तरीके से राक्षसी प्रवृत्ति के अंतर्गत ग्रसित हो चुकी है मनुष्य की मृत्यु का उपहास उड़ाते है ,एक अज्ञानी मनुष्य यदि मनुष्यता या समाज के खिलाफ अनजाने में कोई अपराध करता हूं तो उसका अपराध क्षमा योग्य हो सकता है।
लेकिन एक पत्रकार ,एक पढ़ा लिखा व्यक्ति जब मनुष्य, मनुष्यता और समाज के खिलाफ अपराध करता है तो उसका अपराध निश्चित ही क्षमा योग्य नहीं होता फिर भी ईश्वर अगर कहीं है तो आप विकास शर्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दे।