लोकतंत्र के खर्चीले चुनाव पर्व में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो वाकई लोकतंत्र को एक अलग नजरिये से देखते हैं
बिना चुनाव चिन्ह के चुनाव लड़ने वाली राष्ट्रीय राष्ट्रवादी पार्टी (रा रा पा) के अध्यक्ष प्रताप चन्द्रा ने नई दिल्ली से अपना नामांकन किया।
हम बात कर रहें है प्रतापचंद्रा की जिनकी कोशिश कहें या जिद्द है कि देश में पूर्ण लोकतंत्र की स्थापन हो और जो लोग पार्टीतंत्र के चंगुल में फॅसे है जितना जल्दी हो निकल जाने की कोशिस करें।
ज़रा सा तौर तरीकों में हेर फेर करो…
…अब तुम्हारे हाथ में कालर हो, आस्तीन नहीं
पार्टी तंत्र का विरोध उसी की भाषा में
…. वो सुबह कभी तो आयेगी
वर्तमान लोकतंत्र में पार्टीतंत्र का वर्चस्व कुछ इस प्रकार का है जैसा राजतन्त्र में राजा का होता था और यह बात जितनी जल्दी जनमानस समझ लेगा उतनी जल्दी ही इसका परिणाम भी नजर आने लगेगा।
जरा सोचिये हम अपने विधानसभा या लोकसभा में सदस्य को चुनते है जो हमारे आवाज को उच्च संसद में उठाये अगर आप चुनाव चिन्ह को देखकर वोट डालेंगे तो पार्टी की कीमत बढ़ेगी और पार्टी अपनी टिकट बेचेगी और भ्रष्टाचार बढ़ेगा। आज अगर पार्टी तंत्र का वर्चस्व नहीं होता तो क्या यह सम्भव है की कोई भी पार्टी टेलीविजन और समाचार पत्रों में अरबों रूपये का विज्ञापन देकर यह कहती है आप फलां चुनाव चिन्ह पर बटन दबाएं। इन संगठित गिरोहों के कारण ही देश का अरबों खरबों रुपया केवल इन वजहों से खर्च होता है और मतदाता भी अपना उमीदवार न चुनकर एक ऐसे व्यक्ति का चुनाव कर बैठता है जो सर्वथा ही उस पद के योग्य नहीं है और नतीजन हम एक अयोग्य प्रतिनिधि के भरोसे 5 वर्षों तक का कार्यकाल बिताते है
जरुरत है इस सोच को बदलने की क्योंकि जबतक आम जनता इससे सबक नहीं लेगी तबतक गिरोह तंत्र का यह खेल बदस्तूर जारी ही रहेगा।
अगर आप चुनाव चिन्ह का विरोध करने वाले को वोट करेंगे तो उम्मीदवार की ताकत बढ़ेगी फिर वो पार्टी का गुलाम नही रहेगा जनता के लिए खुद निर्णय ले पायेगा क्योकि उसे पार्टी ने नही आपने जिताया है। जनप्रतिनिधि बनाइये और दल प्रतिनिधि को लोकतंत्र से बाहर करिये।
बिना चुनाव चिन्ह के चुनाव लड़ने वाली राष्ट्रीय राष्ट्रवादी पार्टी (रा रा पा) के अध्यक्ष प्रताप चन्द्रा ने नई दिल्ली से अपना नामांकन किया।