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संघ के हिंदुत्व में भारत का हिन्दू – संतोष कुमार सिंह

हमें यह समझने की आवश्यकत है की , मनुस्मृति का शूद्र कौन है , तो मनुस्मृति 10.65 के अनुसार ब्राह्मण शूद्र बन सकता और शूद्र ब्राह्मण हो सकता है | इसी प्रकार क्षत्रिय और वैश्य भी अपने वर्ण बदल सकते हैं |

सावरकर अपनी पुस्तक “हिंदुत्व ” में यह साफ़ कर चुके हैं की हिंदुत्व का हिन्दू धर्म या हिन्दू संस्कृति से कोई सम्बन्ध नहीं है , इसका मतलब साफ़ है की जिस हिन्दू राष्ट्र की बात आरएसएस और बीजेपी करती है , उसका स्वरूप परम्परागत हिन्दू समाज वाला ना होकर अलग होगा, वैसे भी आप देख सकते की दुनिया में धर्म के आधार पर जितने राष्ट्र/राज्य सत्ताओं का निर्माण हुआ है वहा राज काज के कार्यों में धर्म के शिक्षाओं को ताक पर ही रखा गया है और धार्मिक आडम्बर ने धर्म की शिक्षाओं का स्थान ले लिया है , धर्म का मूलतत्व या आत्मा नगण्य होने के कारण आज दुनिया भर के धर्म बाज़ारू और व्यवसायिक हो गए , तब ज़ाहिर है की हिन्दू राष्ट्र की जिस अवधारणा से आप ओत-प्रोत हो रहे है , उसका स्वरुप आपके अवधारणा से अलग सिर्फ कर्मकांडी और व्यवसायिक होगा

संघ के वरिष्ठ प्रचारक एम.जी वैध ने एक बार कहा की संघ को समझना आसान नहीं है , तो वो बिलकुल ठीक कहते हैं , इससे पहले की हिंदुत्व के बंधुआ मज़दूरी से रिश्ते को समझा जाय, हमें स्पस्ट रूप से यह जान लेना चाहिए की हर राजनितिक या सामजिक संगठन का अपना एक आर्थिक मॉडल होता है , आरएसएस ने कभी अपने हिंदुत्व के सामाजिक मॉडल को छिपाया नहीं , लेकिन कभी आर्थिक मॉडल पर कुछ बोला भी नहीं , यही कारण भी रहा की भावना प्रधान इस हिन्दू बाहुल्य देश की भरी आबादी धर्म और सस्कृति रक्षा के लिए बीजेपी के पाले में खड़ी हो जाती है , वही दूसरी तरफ गाँधी के ग्राम स्वराज की तिलांजलि दे चुकी कांग्रेस , और मार्क्स के वर्ग संघर्ष को पटरी से उतार चुके कम्युनिस्ट विचार शून्य और आर्थिक मॉडल विहीन होकर खुद कॉर्पोरटे के वफादार सेवक होने का दावा कर , बीजेपी के साथ प्रतियोगिता करते नज़र आ रहे है , सेवक चुनने की स्वतंत्रता के बीच कॉर्पोरेट जगत को बीजेपी ज्यादा वफ़ादार नज़र आरही रही है, क्योंकि कॉर्पोरेट को अब नेहरू के कल्याणकारी राज्य के आर्थिक मॉडल के बजाय तानाशाही मॉडल चाहिए , इसी गुत्थी को सुलझा ले तब यह साफ हो जायेगा की बंधुआ मज़दूर का हिंदुत्व से क्या सम्बन्ध है और कैसे यह कॉर्पोरटे के लिए संजीवनी है ..

इसे सुलझाने के लिए थोड़ा पीछे चलते है , पूर्व राष्ट्रपति आर . वेंकटरमन ने किसी अवसर पर कहा था की “नयी अर्थनिति की जो प्रकृति है, उसे देखते हुए लगता है की इन्हे लागु करने के लिए किसी निरंकुश सत्ता की आवश्यकता होगी ” इस कथन का निहतार्थ यह है की नयी अर्थनीति के निजीकरण , उदारीकरण और वैश्विकरण के मूलतत्व सिर्फ कोई स्वछंद सरकार अर्थात इस संवैधानिक घेरे को तोड़ने वाली सरकार ही लागू कर सकती है , कर्णाटक , यूपी की बीजेपी और राजस्थान की कांग्रेसी , सरकारों ने श्रम कानूनों को समाप्त कर यह सिद्ध कर दिया की 90-91 में बनी नयी अर्थनीति सफर 2020 में समाप्त नहीं होगा, बल्कि कॉर्पोरेट के जरूरतों के हिसाब से इसे और सख्ती से लागु किया जायेगा,इसलिए अब काम के घंटे बढ़ा कर 8 से 12 घंटे किया जा रहा है ताकि माल उत्पादन लागत को कम किया जा सके।

आप सोच रहे होंगे की इन बातों का हिंदुत्व से क्या लेना देना ? लेकिन लेना देना है , 2014 में संघ प्रमुख मोहन भागवत का एक बयान आता है की , “सरकार हमारे लिए पड़ाव है, हमारा उदेश्य हिन्दू आधारित सामजिक वयस्था का निर्माण करना है” यही बात पूर्व केंद्रीय मंत्री अनंत हेगड़े भी कहते है की हम संविधान बदलने आये है इसका मतलब साफ़ है की यही वो मिलान बिंदु है जंहा आर. वेंकटरमन का निरंकुश सत्ता का संकेत और संघ प्रमुख का बयान एक हो जाते है .. यही से शुरू होता है नए हिन्दू राष्ट्र का प्रस्थान बिंदु ..

अगर इस बदलाव को हम समझ लें तो हिन्दू राष्ट्र की सामाजिक और आर्थिक बनावट का खाका साफ़ हो जायेगा ..

जो लोग यह सोचते है की संघ के लोग अचानक किसी दिन घोषणा कर देंगे की आज से संविधान निरस्त होता है , और मनुस्मृति लागू होता है , तो वो भ्रम में है , हिन्दू राष्ट्र बनाने काम संविधान सम्मत तरीके से भी हो जायेगा ..

असल में हिटलर और मुसोलिनी का नस्ल शुद्धता वाला जो विचार बीएस मुंझे व हेडगेवार के जरिये गोलवरकर तक पहुंचा , गोलवरकर के चेले उससे आगे निकल चुके हैं , जहा गोलवरकर हिन्दुओं को अंग्रेजो से लड़ने के बजाय मुसलमानो कम्युनिस्टों और ईसाईयों से लड़ने की सलाह देते है ,वही दूसरी ओर कुछ ही दिनों पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा की ” भारत का हिंदुत्व मुसलामानों के बिना अधूरा है “ , इसका अर्थ यह है की नस्लीय शुद्धता का जो विचार गोलवरकर ने दिया वह विचार भागवत तक आते आते अप्रासंगिक हो गया , लेकिन गोलवरकर यह भी कहते है की “मैं पूरी जिंदगी अंग्रजों की गुलामी कर लूंगा , लेकिन मुसलमानों और दलितों को बराबरी का अधिकार कभी नहीं दूंगा ” उनके इस कथन को बारीकी से देखेंगे तो पाएंगे की एक तरफ तो हिन्दुओं को ईसाईयों से लड़ने की सलाह देते है तो दूसरी तरफ पूरी जिंदगी अंग्रेजों की गुलामी करने की बात कर रहे है ,

जबकि सारे अंग्रेज ईसाई ही तो थे, इससे बात आईने की तरह साफ़ है की गोलवरकर के नस्लीय शुद्धता के जरिये हिन्दू राष्ट्र के सामाजिक विचार का आर्थिक हिन्दू राष्ट्र के विचार में रूपांतरण हो जाता है , जिसका आधार शुद्ध रूप से बाजार होगा , धर्म की बातों को वही तक स्थान मिलेगा , जहाँ तक वो बाजार को के अनुकूल हो ,प्रसंगवश हम जान ले की अटल सरकार के दौरान भी संविधान समीक्षा की बात उठी थी , उक्त समीक्षा की चर्चा करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने संसद में कहा की गोलवरकर की पुस्तक में कहा गया है देश से मुसलमानो दलितों को बहार करके या नागरिक अधिकार छीन लेना चाहिए , क्या सरकार इसी प्रकार हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहती है? , तब लाल कृष्ण आडवाणी ने उन्हें बीच में टोकते हुए कहा की चंद्रशेखर जिन बातों जिक्र कर रहे है, उन बातों का खंडन स्वम गोलवरकर ने ही कर दिया है।

इससे भी यह साफ़ है की अब संघ के लिए हिन्दू राष्ट्र का मसला सामाजिक न रह कर आर्थिक हो गया था , हमें इस भ्रम में नहीं रहना चाहिये की , देश के नेता और राजनितिक दल संघ के इस नए हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना से अनभिज्ञ है , बात यह की संघ का यह आर्थिक हिन्दू राष्ट्र देश के सभी बड़े नेताओं , अधिकारीयों और कारपोरेट अर्थात पुरे शासक वर्ग के लिए उपुक्त है , यही कारन है , की सभी राजनितिक दल और नेता संघ के इस हिन्दू राष्ट्र पर न केवल मुरदयी चुप्पी साध बैठे है , बल्कि खुद को हिंदूवादी सिद्ध करने के होड़ में शामिल भी है ,

कोरोना ने बैठे बिठाये एक ऐसा अवसर बीजेपी सरकार को दे दिया जिस जरिये नुमाइंदे अपने वर्षों से दबे महत्वाकाँक्षा को पूरा कर सके, जो एनआरसी एनपीआर के जरिये पूरा न हो सका , कोरोना ताला बंदी के कारण करोङो की संख्या में देश के नागरिक सड़कों पर अपनी मौत जोह रहे हैं , जिसमे 95 प्रतिशत से भी अधिक आबादी हिन्दुओ की है , केंद्र और राज्य की सरकारों के रुख से आरएसएस के हिंदुत्व की पोल भी खुल जाती है , आप कह सकते की इन करोड़ो लोगों में भारी आबादी छोटी जातियों की है और संघ का ब्राह्मणवादी नजिरया छोटी जातियों के लिए ठीक नहीं रहा है , आपका का यह सोचना मनुस्मृति को ना पढ़ने के कारण आपके भ्रम से अधिक कुछ नहीं है।

मनुस्मृति के अनुसार मनुष्य जन्मजात शूद्र होते है , आगे चल कर इंसान अपने कर्म के आधार पर अपने वर्ण का चयन करता है , मनुस्मृति 3.109 के अनुसार जो जन्मना ब्राह्मण या ऊँची जाति वाले अपने गोत्र या वंश का हवाला देकर स्वयं को बड़ा कहते हैं और मान-सम्मान की अपेक्षा रखते हैं उन्हें तिरस्कृत किया जाना चाहिए | संघ जाति के स्थान पर वर्ण पर जोर देता है तो उसके पीछे मनुस्मृति की यह शिक्षा ही है , संघ कहता है की “ज्ञान में ब्रह्मण , बल में क्षत्रिय , व्यापार में वैश्य और सेवा में शूद्र हूँ , हाँ मैं हिन्दू हूँ ”

अब हमें यह समझने की आवश्यकत है की , मनुस्मृति का शूद्र कौन है , तो मनुस्मृति 10.65 के अनुसार ब्राह्मण शूद्र बन सकता और शूद्र ब्राह्मण हो सकता है | इसी प्रकार क्षत्रिय और वैश्य भी अपने वर्ण बदल सकते हैं |

मनुस्मृति 9.335 शरीर और मन से शुद्ध- पवित्र रहने वाला, उत्कृष्ट लोगों के सानिध्य में रहने वाला, मधुरभाषी, अहंकार से रहित, अपने से उत्कृष्ट वर्ण वालों की सेवा करने वाला शूद्र भी उत्तम ब्रह्म जन्म और द्विज वर्ण को प्राप्त कर लेता है |

मनुस्मृति के अनेक श्लोक कहते हैं कि उच्च वर्ण का व्यक्ति भी यदि श्रेष्ट कर्म नहीं करता, तो शूद्र (अशिक्षित) बन जाता है , बात साफ़ है की करोड़ों लोग आज जो सड़कों पर मारे मारे फिर रहे है यही संघ के शूद्र भी है , इस बात को और स्पष्ट करने के लिए मनुस्मृति के2.136 :का हवाला ले सकते है जिसमे साफ़ कहा गया है की धनी होना, बांधव होना, आयु में बड़े होना, श्रेष्ठ कर्म का होना और विद्वत्ता यह पाँच सम्मान के उत्तरोत्तर मानदंड हैं | इन में कहीं भी कुल, जाति, गोत्र या वंश को सम्मान का मानदंड नहीं माना गया है।

यदि वर्तमान सामाजिक व्यवस्था को हम मनु स्मृति से जोड़ कर देखे तो यह बात साफ़ हो जाती है की किसी भी वर्ण में जन्मा व्यक्ति यदि गरीब है तो वह संघ के लिए शूद्र ही है, और यदि वह धनवान है तो वह सम्म्मान का पात्र और उच्च वर्ण का है।

अब हम निसंदेह इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते है की बिहार आसाम या यूपी जैसे राज्यों से रोजगार की तलाश में दिल्ली मुंबई जाने वाले ठाकुर ,ब्राह्मण संघ के लिए शूद्र तथा रामविलाश पासवान , मायावती , मुलायम सिंह जैसे दलित पिछड़ों की राजनीति करने वाले लोग संघ के लिए उच्च वर्ण के हिन्दू हैं , बात यही नहीं खतम होती बल्कि कुलीन मुलसमान भी आज राष्ट्रवाद के नाम पर संघ के साथ खड़े है संघ को इन राष्ट्रवादी अर्थात धनाढ्य मुसलमानो से परहेज नहीं है , यही कारण है की इन नेताओ ने संघ के हिंदुत्व को कभी चुनौती नहीं देते है

संघ अपने अपने विकास के उस चरण में पहुँच चुका है , जहाँ उसने अपना नया हिंदुत्व और उसके अनुयायिओं की एक विभाजक रेखा खिंच सके , जाहिर सी बात है की संघ के जो नए किस्म के शूद्र है उनका प्रमुख कार्य नए किस्म के उच्च वर्णीय महाप्रभुओं की सेवा का ही है , श्रम कानूनों में शंसोधन के जरिये राज्य सत्ता ना केवल शूद्रों को सेवा का अवसर दे रही है बल्कि नए हिंदुत्व का द्वार भी खोल रही रही है , यही कारण है की सम्मान प्राप्त धनाढ्यों को हेलीकॉप्टर जहाज और शूद्रों के लिए पुलिस का और फौज का डंडा व गोली उपलब्ध है , आप सर खुजाते हुए यह मत सोचिये की की आखिर इन शूद्रों का कोई नागरिक अधिकार भी तो है , फिर शूद्रों का कैसा अधिकार , जबकि अभी देश के भीतर विदेशी मुसलमान घुसपैठिये व विदेशी प्रताड़ित हिन्दुओं की खोजबीन का काम सरकार बहादुर के पास शेष है।

ऐसा नहीं है की सरकार अपनी दरिया दिली नहीं दिखाएगी , निश्चित ही नए किस्म के शूद्रों की भी जांच पड़ताल होगी की इनमे कितने हिन्दू विदेशों से प्रताड़ित होकर आये है , सरकार अगले दस बीस सालों में उन्हें नागरिकता दे देगी , लेकिन अबैध आव्रजक के पास नागरिकता मिलने से पहले संम्पति, नागरिक और वोट का अधिकार कैसे प्राप्त हो जायेगा?

हुक्मरानों ने साफ कर दिया है की ऐसे विदेशी मुसलमानो को नागरिकता नहीं दी जाएगी और हम एक इंच पीछे नहीं हटेंगे।

बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी कह भी चुके है की अबकी बार मतदान घर बैठे बैठे हो जायेगा।

छोटे मोदी के बयान यह स्पष्ट है की नए हिंदुत्व के मॉडल में देश के 95% लोगो के नागरिक और वोट के अधिकार पर संकट है , आला हाकिम का यही 4L है , लिक्विडिटी, लैंड, लॉ और लेबर सब केवल नागरिक के लिए है , नाकि नागरिकता विहीन शूद्रों के लिए ,यही विश्वगुरु का मॉडल भी है जहाँ 5% आबादी के भारत दुनिया का सबसे आमिर और करोड़ों की संख्या में शरणार्थियों को पालने वाला उदार देश का दर्ज़ा प्राप्त कर सकेगा , ऐसे में देश के प्रत्येक नागरिक सामने चुनौती है की सबसे पहले वो यह जान ले की वह खड़ा कहा पर है , क्योकि आगे के सफर में उसके शूद्र होने की पूरी संभावना बानी रहेगी

लेखक संतोष कुमार सिंह वरिष्ठ प्रत्रकार है।

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