नवरात्रि की तीसरी शक्ति विश्व भर में माँ चंद्रघंटा के रूप में जानी जाती है। नवरात्रि के तीसरे दिन इनकी पूजा का बहुत अधिक महत्व है। आदिशक्ति का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी माना गया है।
आम जनमानस की बात करे तो इन्हें माँ भगवती चंद्रघंटा के नाम से भी पूजा जाता है। देवी का यह रूप बेहद मनमोहक है। परम शांतिदायक और कल्याणकारी देवी चंद्रघंटा का शरीर स्वर्ण के समान उज्जवल है।
देवी के इस स्वरूप का वाहन सिंह है और इनके दस हाथ हैं जो की अलग अलग प्रकार के अस्त्र-शस्त्र से सुशोभित हैं। कहा जाता है कि माता के सिर पर अर्ध चंद्रमा मंदिर के घंटे के आकार में सुशोभित हो रहा जिसके कारण देवी का नाम चन्द्रघंटा हो गया है।
सिंह पर सवार मां चंद्रघंटा का रूप युद्ध के लिए उद्धत दिखता है और उनके घंटे की प्रचंड ध्वनि से असुर और राक्षस भयभीत रहते हैं।
पौराणिक कथा – एक पौराणिक कथा के अनुसार देवताओं और असुरों के बीच एक लंबे समय तक युद्ध चला। असुरों के राजा महिषासुर ने देवाताओं को पराजित कर उनके देव- इंद्र का सिंहासन हासिल कर स्वर्गलोक पर अपना राज स्थापित कर लिया था।
जिससे सभी देवतागण भयभीत हो गए और इस समस्या से निकलने के लिए त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश जी के पास गए। देवताओं ने त्रिदेवों को बताया कि महिषासुर ने इंद्र, चंद्र, सूर्य, वायु और अन्य देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए हैं और उन्हें बंधक बना लिया है।
यह सुनकर त्रिदेवों को अत्यधिक क्रोध आया और उनके क्रोधित मुख से ऊर्जा उत्पन्न हुई और उसने एक देवी का रूप लिया। उस देवी को भगवान शंकर ने त्रिशूल और भगवान विष्णु ने चक्र प्रदान किया और बाकी अन्य देवी देवताओं के साथ देव इंद्र ने अपना वज्र और ऐरावत हाथी से उतरकर एक घंटा दिया भी माता को भेंट स्वरूप दिया। भगवान् सूर्य ने माता को अपना तेज और तलवार के साथ सवारी के लिए शेर भेंट किया।
सभी देवी देवताओं के दिव्य अस्त्र -शास्त्रों से माता को पूर्ण रूप से युद्ध अब तैयार किया जा चुका था। उनका विशालकाय रूप देखकर राक्षसराज महिषासुर यह समझ गया था कि अब उसका काल निकट आ गया है।
माता को निकट आते देख राक्षस राज महिषासुर ने अपनी सेना को देवी पर हमला करने के लिए भेज दी।
कथा के अनुसार जैसी ही देवी की नज़र राक्षस राज महिषासुर पर पड़ी उन्होंने एक ही झटके में उसका संहार कर दिया। इस तरह मां चंद्रघंटा ने सभी देवताओं को असुरों के कहर से मुक्त किया।
पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
स्वरूप – भले ही माँ चंद्रघंटा त्रिदेवों की ऊर्जा से उतपन्न हुई है लेकिन माँ का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके दस हाथ हैं जिनमे खड्ग, बाण आदि शस्त्र विराजमान रहते है। सिंह पर सवार इस देवी की मुद्रा युद्ध के लिए उद्धत रहने की है। इसके घंटे सी भयानक ध्वनि से अत्याचारी दानव-दैत्य और राक्षस हमेशा कांपते रहते है।
श्लोक – पिण्डजप्रवरारुढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता | प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता ||
आपको बता दें की माता चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना से सभी भक्तजनों के जन्मों-जन्मों के कष्ट और पाप दूर हो जाते है। माता अपने सच्चे भक्तों को लोक-परलोक में कल्याण प्रदान करती है नवरात्रि के तीसरे दिन पूर्ण तन एवं मन से मां चंद्रघण्टा की आराधना करने के लिए निम्नलिखित मंत्र से उनकी पूजा करें।
पिण्डज प्रवरारुढ़ा चण्डकोपास्त्र कैर्युता |
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्र घंष्टेति विश्रुता ||