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देश की पहली समाजवादी सरकार इसलिए गिराई गई थी क्योंकि वह सरकार पूजीपतियों के लिए मन माक़िफ़ नहीं थी.

देश की पहली समाजवादी सरकार इसलिए गिराई गई थी क्योंकि वह सरकार पूजी पतियों के लिए नहीं थी उस सरकार का मुख्य कार्यक्षेत्र गरीब मजलूम किसान मजदूर युवा आदि के लिए था इसलिए विश्व बैंक ने जो उन दिनों नई आर्थिक नीति लागू करने के संबंध में जो वैकल्पिक प्रस्ताव व दस्तावेज़ भेजे थे प्रधानमंत्री रहते हुए चंद्रशेखर जी को वह दस्तावेज नहीं दिखाए गए थे नरसिंह राव के प्रधानमंत्री बनने के बाद यह प्रसंग बहुत तेजी से उछला यह सवाल भी लोगों ने उठाया कि विश्व बैंक के इशारे पर कैसे भारत की नौकरशाही ने 4 महीने विश्व बैंक के उन दस्तावेजों को तत्कालीन प्रधानमंत्री से छिपाए रखा था अंदरूनी तथ्य यह था कि यह सिलसिले पहले से ही चले आ रहे थे बी पी सिंह प्रधानमंत्री थे और तब अजीत सिंह ने नई औद्योगिक नीति बनाई थी यह नीति भी अमेरिकापरस्त व विश्व बैंक के दिशा निर्देश के अनुरूप ही बनी थी इससे पहले राजीव गांधी ने भी अपने प्रधानमंत्री काल में वित्त मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के सहयोग से नई आर्थिक नीतियों का सूत्रपात किया था वह भी सभी विश्व बैंक के अनुसार और उन्हीं के इशारे पर बनाए गए थे उस समय से लेकर के और लगातार चंद्रशेखर जी इन अर्थ नीतियों के खिलाफ अकेले आवाज बनकर संसद से लेकर सड़क तक चलते रहे थे । अपने दल की सरकार की औद्योगिक नीति (अजीत सिंह ) के खिलाफ लोकसभा में भी उन्होंने अत्यंत प्रभावी बयान दिया था जो कि आज भी देखा जा सकता है और सुना जा सकता है ।

First Socialist PM of India Chandrasekhar
First Socialist PM of India Chandrasekhar

पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव व मनमोहन सिंह की नई आर्थिक नीति के खिलाफ उन्होंने पूरे देश में ख़िलाफ़त चलवाई थी और इसके लिए सड़क से लेकर संसद तक हर जगह उन्होंने इस अर्थ नीति के खिलाफ नीतियों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की थी परंतु दुर्भाग्य था कि उन बातों को सही मायने में जगह नहीं दिया गया नतीजा आज हम देख रहे हैं सबके सामने है।

दरअसल नव पूंजीवाद (नई अर्थ नीति के दौर को समाजशास्त्री अर्थशास्त्री न्यू कपट लीजम या बाजारवाद या ग्लोबलाइजेशन के नाम से भी पुकारते हैं ) के इस दौर से चंद्रशेखर जी का पुराना बैर था राजनीति में अध्यक्ष जी का उदय विकास ही उस वैचारिक धरातल पर हुआ जो निजी पूंजी के बढ़ते वर्चस्व को एक सुंदर समतामूलक समाज के लिए घातक मानता था। इसी आधार पर उनका युवातुर्क आंदोलन परवान चढ़ा बैंकों का राष्ट्रीयकरण हो या पृवीपर्स खत्म करने जैसे कदम या बिरला टाटा के खिलाफ एकाधिकार के मामले एक बड़े सपने को साकार करने की दिशा में उठाए कदम थे इस कारण हिंदुस्तान की बड़ी पूंजी बड़े घराने शुरू से ही उनके खिलाफ रहे इस बड़ी पूंजी ने एक बार राज्यसभा से उनका टिकट कटवाने की भी भरपूर कोशिश की थी इन सवालों को भूपेश गुप्ता व अन्य कई जाने-माने लोगों ने उन दिनों संसद में उठाया भी था इस पूंजी ने उनकी सरकार को अस्थिर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी 1990 में देश संकट में था उस समय चंद्रशेखर सरकार ने करीब 12 सौ करोड़ रुपए के कारपोरेट घरानों पर अतिरिक्त कर लगाए थे इसमें से एक बड़े घराने पर सबसे बड़ा बोझ पड़ा था । साधारण जनता पर कर नहीं लगाए गए थे। यह वही घराना था जो आज राजनीति का भविष्य तय करता है।। वह अक्सर कहते रहे थे कि देश संकट में है जो संपन्न समर्थ और ऊपर का धनाढय तबका है उसे अतिरिक्त कुर्बानी देनी होगी और बोझ भी उठाना पड़ेगा परन्तु चंद बड़ी पूंजी के एकाधिकार के विरोध के कारण चंद्रशेखर जी को भारी कीमत भी चुकानी पड़ी ।।

उनकी सरकार हरियाणा के दो सिपाहियों द्वारा राजीव गांधी के चौकसी के कारण नहीं गई थी सनद रहे पूर्व राष्ट्रपति वेंकट रमन जी जो उन दिनों भारत के राष्ट्रपति थे उन्होंने अपने संस्करण में लिखा है कि राजीव गांधी ने कम से कम 1 साल तक बिना शर्त चंद्रशेखरजी को समर्थन देने का आश्वासन दिया था तब चंद्रशेखरजी को सरकार बनाने के लिए न्योता दिया गया था सरकार जाने के पीछे मूल कारण थे बड़े घरानों द्वारा चंद्रशेखर के खिलाफ मुहिम । अयोध्या प्रकरण के हल के आसार, स्टेट्समैन और कुशल शासक के रूप में चंद्रशेखर का उदय अमेरिकी ताकतों के खिलाफ मुहिम और प्रस्तावित बजट का भयंकर भय।

चंद्रशेखर सरकार को केवल इसलिए गिराया गया था ताकि किसी भी सूरतेहाल में वो बजट पेश ना कर सकें इस बजट से उस समय के उद्योगपति के अंदर इतना भय व्याप्त था कि अगर वह बजट पास हो जाता तो शायद देश की तस्वीर ही कुछ और होती चंद्रशेखर सरकार को बजट नहीं बनाने दिया गया क्योंकि बड़े घराने और समर्थ राजनीतिक दलों के बीच यह चर्चा और चिंता का विषय था कि 1990 के संकट से निपटने के लिए चंद्रशेखर सरकार जो देशज रास्ता निकाला था और चंद्रशेखरजी अपने विचार से जो बजट तैयार करवा रहे थे उससे देश में आर्थिक मुद्दों पर मोर्चाबंदी हो जाएगी । धर्म और जाति की राजनीति काफी पीछे छूट जाएगी । जो उस समय के कांग्रेस और भाजपा को बिल्कुल पसंद नही थी । भारत का पूंजीवादी वर्ग और इलीट क्लास नही चाहता था की देश के अंदर उनका वर्चस्व कम हो और उनकी पूँजी का राष्ट्रीयकरण हो मुख्य कारण इसलिए चंद्रशेखर की सरकार गिराई गई थी।

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