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सामाजिक न्याय और समरसता के पुरोध, भारतीय संविधान के शिल्पकार बाबा साहेब अम्बेडकर जी की जयंती पर उन्हें शत शत नमन संगठित रहिये शिक्षित बनिये ।।

भारतीय संविधान के वास्तुकार अम्बेडकर जी ने हमारे देश को और हमारे समाज को जो दिया है शायद हम उसकी तुलना नहीं कर सकते । जब डॉक्टर साहेब 1942 में गवर्नर जनरल की कौंसिल में शामिल हुए तथा जब श्रम मंत्री का दायित्व संभाला तो उन्होंने इस अवसर का भरपूर उपयोग देश की उन्नति और प्रगति के लिए किया. उन्होंने मजदूरों की दयनीय दशा देखते हुए उनके लिए काम के लिए 8 घंटे का समय तय करवाया, महिला मजदूरों के लिए प्रसूति अवकाश की व्यवस्था लागू की ।


देश में वर्षा के मौसम में आने वाली बाढ़ और गर्मी में सूखे की समस्या से निजात पाने तथा रोज़गार के लिए उद्योग लगवाने के लिए बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना का ड्राफ्ट स्वयं तैयार किया. आधुनिक भारत में चल रही सभी नदी घाटी परियोजनाए बाबासाहब की दूरदर्शिता का ही परिणाम है। यह बात शायद बहुत कम लोगो को पता होगी क्योंकि सामान्यतया बाबा साहेब का नाम आते ही लोग संविधान तक ही सिमट के रह जाते हैं ।

बाबासाहब ने संविधान को देश में समता और स्वतंत्रता स्थापित करने का एक कानूनी माध्यम के रूप में स्थापित किया और इसके द्वारा देश से छूआछूत, जातिवाद, लिंगभेद और वर्गभेद सहित तमाम विषमताओं का खात्मा कर दिया पर वे भली भांति जानते थे की कानून से सिर्फ किसी अपराध को नियंत्रित किया जा सकता है |

आज हम जहाँ भी देखते हैं हर 15 किलो मीटर के बाद 1 या 2 मूर्ति तो नजर आ ही जाती है । बाबा साहेब भीम राव आंबेडकर जी की लेकिन क्या सही मायने में यही उनके विचारों की अभिव्यक्ति है। आज का भारतीय जनतंत्र पूर्णरूपेण जातीय, क्षेत्रीय एवं सांप्रदायिक जनतंत्र में बदल चुका है। जहाँ पर कुछ लोग अल्पकालिक स्वार्थ सिद्धि के लिए बाबा साहेब के नाम का प्रयोग करते हैं लेकिन मुख्य विचारधारा से वो कोसों दूर है । बाबा साहेब ने जाति-उन्मूलन की विचारधारा पर बल दिया था । जहाँ पर कोई धर्म अगर है तो वह मानव धर्म है परन्तु वर्तमान तथा भुत पर अगर दृष्टी डाले तो हम पाते हैं कि वास्तविकता कुछ और ही है । जाति विहीन समाज कि कल्पना के विपरीत होकर वर्तमान समाज और भी निंदनीय होता जा रहा है ।

डॉक्टर भीम राव ने कहा था कि मै किसी समुदाय की प्रगति उस मापदंड से करता हूँ कि उस समुदाय की महिलाओं ने किस हद तक तथा कितनी प्रगति हासिल की है । जान के आश्चर्य होगा कि २१७ सदस्यों कि संघीय सभा में १५ महिलायें थी । आज ६ ६ वर्षों के उपरान्त हमारे लोकसभा में मात्र ५ ९ महिला सांसद है । मैंने ये देखा है कि हर सत्र में इस विषय [५ ० फीसदी सीट लोकसभा तथा राज्य सभा में ] पर चर्चा तो अवश्य होती है । परन्तु हमारे राजनीतिज्ञ यह स्वीकार करने को बिलकुल भी तैयार नहीं है कि ५ ० % महिला प्रतिनिधि की संख्या हमारे संसद में सुनिश्चित हो जाये । इसका मुख्य कारण राजनीतिज्ञों में दृढ इच्छासक्ति तथा कुशल नेतृत्व का अभाव है । हमारे राजनीतिज्ञ इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं हैं कि महिला वर्ग को ५ ० % आरक्षण सुनिश्चत हो सके |

डॉक्टर भीम राव ने आरक्षण कि व्यवस्था देश हित के लिए सोचा था और संविधान के अनुरूप देश में लागू भी हुआ परन्तु सत्ता के लोलुप राजनीतिज्ञों ने इसको सत्ता भोग का साधन बना लिया । सुधारों के नाम पर सार्वजानिक प्रतिष्ठान बंद होने लगे और जो बंद नहीं हुए उनका विनिवेश कर दिया गया । इस प्रकार से सत्ता के लोलुप लोगो ने देश का बेडा गर्क कर दिया । यह प्रश्न है की जब हमारे पास सार्वजानिक प्रतिष्ठान रहेंगे ही नहीं तब हम किस प्रकार से आरक्षण की सुविधा मुहैया कराएँगे यह एक यक्ष प्रश्न है जहाँ सभी निरूत्तर है । आरक्षण नीति सही ढंग से लागू न होने के कारण दलित समाज का नुकसान भी हुआ है। डॉ. अंबेडकर की आशंका सही सिद्ध हुई। विधानसभा तथा लोकसभा में चुने हुए प्रतिनिधि दलित मुक्ति के सवाल पर देश हित समाज हित को तिलांजलि देकर नकारात्मक भूमिका में आ गए। मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि डॉ. अंबेडकर की जाति-उन्मूलन की विचारधारा को मूर्त रूप नहीं दिया जा सकता। ऐसा जनतंत्र राष्ट्रीय एकता के लिए वास्तविक खतरा है। डॉ. अंबेडकर की उक्ति- जातिविहीन समाज की स्थापना के बिना स्वराज प्राप्ति का कोई महत्व नहीं, आज भी विचारणीय है।


जय शक्ति जय भारत

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