मीडिया संकट में, बाधक चुनौतियों और अनिश्चित भविष्य पर काबू पाने के लिए स्व-सुधार आवश्यक : उपराष्ट्रपति श्री एम.वेंकैया नायडू
श्री नायडू ने मीडिया से विकास और परिवर्तन पर फोकस करने का आग्रह कियाफर्जी खबरों के विस्तार को रोकने के लिए सोशल मीडिया के उपयोग में समझदारी बरतने का आह्वान किया। प्रख्यात पत्रकार स्वर्गीय श्री एम.वी.कामत के योगदानों की प्रशंसा की.
बाधाकारी प्रौद्योगिक प्रगति को देखते हुए मीडिया तथा पत्रकारिता के भविष्य और समाचारों की पवित्रता पर चिंता व्यक्त करते हुए उपराष्ट्रपति श्री एम.वेंकैया नायडू ने सभी हितधारकों से साख सम्पन्न पत्रकारिता सुनिश्चित करने का आग्रह किया, क्योंकि मीडिया सार्वजनिक विमर्श के लिए लोगों के सशक्तिकरण का कारगर औजार है।
श्री नायडू हैदराबाद में आज एम.वी.कामत मेमोरियल एन्डाउमेंट लेक्चर को वर्चुअल माध्यम से संबोधित कर रहे थे। उन्होंने ‘जर्नलिज्म : पास्ट, प्रेजेन्ट एंड फ्यूचर’ विषय पर विस्तार से चर्चा की।
उपराष्ट्रपति ने प्रेस की स्वतंत्रता, सेंसरशिप, रिपोर्टिंग के नियमों का उल्लंघन, पत्रकारों का सामाजिक दायित्व, पत्रकारिता के मूल्यों में गिरावट, पीत पत्रकारिता, छद्म-युद्धकी पत्रकारिता, लाभ के लिए रिपोर्टिंग, फर्जी और पेड समाचारों के रूप में गलत सूचना के प्रसार के संदर्भ में मीडिया और पत्रकारिता पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने इंटरनेट से आए विघ्न और इन चिंताओं के बीच मीडिया के भविष्य और चुनौतियों पर प्रकाश डाला।
श्री नायडू ने कहा कि पीत पत्रकारिता का उद्देश्य लुभावने शीर्षकों का सहारा लेकर तथ्यों पर पर्दा डालना और गलत सूचनाओं को प्रोत्साहित करना है। पीत पत्रकारिता के साथ झूठे मुद्दे चलते है। दोनों का उद्देश्य पाठक और दर्शकों की संख्या बढ़ाना है, इससेबचा जाना चाहिए।
फर्जी समाचारों के रूप में इंटरनेट और सोशल मीडिया पर त्वरित पत्रकारिता प्रारंभ हो गई है। उन्होंने कहा कि यह चिंता की बात है और इससे पत्रकारिता के मूल्यों में गिरावट आती है। उन्होंने कहा कि टेक्नोलॉजी क्षेत्र के दिग्गज सूचना के द्वाररक्षक हो गये हैं और वेब समाचारों के मुख्य वितरक के रूप में उभर रहे हैं। श्री नायडू ने समाचार पत्रों की वित्तीय जटिलताओं की चर्चा करते हुए कहा कि टेक्नोलॉजी कंपनियां पत्रकारिता उत्पादों का लाभ उठा रही हैं और उनके साथ राजस्व साझा नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इंटरनेट ने राजस्व और रिपोर्टिंग मॉडल में बाधा डाली है। इसके गंभीर परिणाम हो सकते है।
श्री नायडू ने कहा कि प्रिंट मीडिया की सूचना और रिपोर्टों की लूट सोशल मीडिया कंपनियां पर्याप्त लागत पर कर रही है, यह उचित नहीं है। उन्होंने बताया कि कुछ देश यह सुनिश्चित करने के उपाय कर रहे हैं कि सोशल मीडिया की कंपनियां प्रिंट मीडिया के साथ राजस्व साझा करें। हमें भी इस समस्या को गंभीरता से लेना होगा और पारंपरिक मीडिया के अस्तित्व के लिए उचित राजस्व साझा करने का मॉडल सामने लाना होगा।
समाचार पत्र 18वीं शताब्दी से सूचना के प्रसार तथा 20वीं शताब्दी में रेडियो और टेलीविजन के उदय के बाद से लोगों के सशक्तिकरण का प्रभावशाली माध्यम रहे हैं। श्री नायडू ने कहा कि इंटरनेट के वर्तमान जमाने में भी लाखों लोग सुबह की कॉफी और अखबार के साथ जगते हैं। उन्होंने कहा कि मैं भी इन लोगों में हूं, लेकिन सुबह की कॉफी के बिना ही।
श्री नायडू ने सूचना के लोकतांत्रिकरण और विकेन्द्रीकरण तथा सोशल मीडिया के विस्तार का स्वागत करते हुए कहा कि सोशल मीडिया में समाचारों का अवमूल्यन होता है। उन्होंने कहा कि सामाजिक सद्भाव, समान हित, शांति तथा राष्ट्रीय सुरक्षा को देखते हुए सोशल मीडिया के इस्तेमाल में समझदारी बरतनी सुनिश्चित की जानी चाहिए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ एक-दूसरे के विरुद्ध आक्रोश और घृणा का प्रकटीकरण नहीं है।
देश के सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक परिवर्तन की रिपोर्टिंग और विश्लेषण में मीडिया की भूमिका की चर्चा करते हुए श्री नायडू ने ऐसे परिवर्तनों की रिपोर्टिंग में निरंतरता रखने का मीडियाकर्मियों से आग्रह किया। उन्होंने कहा कि परिवर्तन को मापने में विभिन्न अवधि के पैमानों का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि वह मीडिया को बहुरूपी बनने का सुझाव नहीं देते, मीडिया को रिपोर्टिंग और विश्लेषण के मानक का इस्तेमाल करना चाहिए, जो परिवर्तन को सही रूप में देखें। लोगों की नजर में यह नहीं होना चाहिए कि मीडिया द्वारा विकास की साख कम की जा रही है।
श्री नायडू ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में देश में जो भी परिवर्तन हो रहे हैं, वह संविधान के ढांचे में है और संदर्भ की दृष्टि से ये प्रासंगिक है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्र निर्माण एक प्रगति का कार्य है, जिसे सामूहिक उत्साह के साथ जारी रखा जाना चाहिए। श्री नायडू ने कहा कि ऐसे प्रयास में राष्ट्रीयता का भाव होना चाहिए, जो सभी भारतीयों को एक धागे में पिरोता है। उन्होंने कहा कि इस भाव को विघटनकारी दृष्टियों से कमजोर बनाना सही नहीं है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक घटना और विषय को विघटनकारी दृष्टि से प्रस्तुत करना राष्ट्रनिर्माण के लक्ष्य को नुकसान पहुंचाना है।
श्री नायडू ने मीडिया से समाधान का हिस्सा बनने और समस्या का हिस्सा न बनने का आग्रह किया, क्योंकि प्रत्येक नागरिक, सरकार तथा अन्य हितधारकों की तरह ही राष्ट्र के प्रति मीडिया की भी निश्चित जिम्मेदारी है।
विभिन्न कारणों से मीडिया और पत्रकारिता द्वारा झेले जा रहे संकट और बाधाकारी परिवर्तनों के बीच अनिश्चित भविष्य की चर्चा करते हुए श्री नायडू ने कहा कि बेहतर भविष्य के लिए स्वयं को सुधारना आवश्यक है। उन्होंने व्यवस्था बहाल करने के लिए सहायक दिशा-निर्देशों और नियमों का सुझाव दिया। उन्होंने प्रतिबंधात्मक नियमों को गलत बताया।
श्री नायडू ने मीडिया से विकास प्रयासों की रिपोर्टिंग और विकास के परिणामों की रिपोर्टिंग पर पर्याप्त ध्यान देने और परिवर्तनों की शुरुआत का विश्लेषण करने को कहा।
उपराष्ट्रपति ने मीडियाकर्मियों से समाचारों और विचारों को अलग-अलग रखने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि दोनों को एक-दूसरे में प्रवेश करने की इजाजत नहीं होनी चाहिए। उन्होंने पत्रकारिता के मूल्य में गिरावट को रोकने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि स्वर्गीय श्री कामत ने समाचारों और विचारों के बीच अंतर को बनाए रखा। प्रख्यात पत्रकार श्री कामत को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए श्री नायडू ने कहा कि उन्होंने पत्रकारिता के अपने कार्यकाल में देश और देश के बाहर भी सम्मान अर्जित किया।
श्री नायडू ने कहा कि पत्रकारिता अब बढ़ती मांग चुनौतियों और विशेषज्ञता का पेशा हो गई है। उन्होंने पत्रकारिता और मीडियाकर्मियों के लिए कार्य योग्य माहौल बनाने की आवश्यकता पर बल दिया। श्री नायडू ने कोविड-19 महामारी के संकट में मीडिया संगठनों की भूमिका की सराहना की।
इस कार्यक्रम में मणिपाल अकादमी ऑफ हायर एजुकेशन (एमएएचई) के माननीय प्रो. वाइस चांसलर डॉ. एच.एस. भल्लाल, वाइस चांसलर लेफ्टिनेंट जनरल एम.डी. वेंकटेश, मणिपाल इंस्टीट्यूट ऑफ कम्युनिकेशन की निदेशक डॉ. पद्मा रानी और प्रशासनिक तथा अकादमिक विभागों के सदस्य भी उपस्थित थे।
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