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चाइनिज सामान पर प्रतिबंध जरूरी परन्तु इसके लिए जरुरी योजनाएं और विजन भी सरकार को बनानी पड़ेगी?

चीनी उत्पादों का विरोध तो उचित है परन्तु इसके विकल्पं पर सरकार का ध्यान है भी ? या यह भी जुमलों की भांति ही है

विकास की प्रकिया में जो प्रैक्टिकल हो उसके बारे में हम बात कर रहे हैं ।। चीनी समान को बाय बाय कहने से पहले हमें उनके विकल्पों के बारे में विचार करना चाहिए आखिर देश में जो आयातित समान चाइना से आ रहे हैं या थे उनकी भरपाई करने में भारत सक्षम है भी या नहीं यह एक यक्ष प्रश्न है जो हर एक भारतीय को सोचना चाहिए। आखिर भारत का नागरिक चाइना का सामान भी तभी खरीद पाता है जब वो सामान आयात कर के देश के अंदर मंगाए जाते है।

वर्तमान में भारत चीन का सबसे बड़ा आयातक( चीन से सामान खरीदने वाला) देश हैं
2019 में भारत ने चीन से करीब 75 अरब डॉलर के सामान का आयात किया और उसे करीब 18 अरब डॉलर का निर्यात किया। इस तरह देखें तो चीन से व्यापार मेंभारत को 56.77 अरब डॉलर का नुकसान हुआ। अगर भारत, चीन के साथ कारोबार खत्म करता है तो न सिर्फ इस घाटे से बच सकता है, बल्कि चीन की अर्थव्यवस्था को घुटने के बल झुका भी सकता है। हालांकि, इसके लिए सरकार को जरूरी होम वर्क पहले कर लेना होगा।

99% मोल्डिंग मशीन मेड इन चीन है अपने देश मे PCB मैन्युफैक्चरिंग की कोई अच्छी यूनिट नही सारी इलेक्ट्रॉनिक बोर्ड चीन साउथ कोरिया जापान और ताइवान से आती है और अपने देश मे केवल असेम्बल होती है ।

विगत वर्षों से हम बिजली आधारित कार बाइक स्कूटर की बात कर रहें है और इसमें अग्रसर भी है पर लिथियम आयन बैटरी का कोई उत्पादन अपने देश में नही है यहाँ केवल क्लिप लगाई जाती है और वो क्लिप भी चीनी और सरकार की ऐसी कोई योजना धरताल पर भी नहीं है और न ही भारत अभी तक किसी भी प्रकार से उत्पादन के लिए सक्षम है ।

यहां तक कि बिजली के पंखे एयर कूलर तक के मोटर और किट भी चीनी कंपनियों द्वारा निर्मित है और भारत के नामी गिरामी कंपनियों के द्वारा ओईएम के सहयोग से केवल असेम्बली की जाती है ।

भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों के कुल आयात में चीन की 45 फीसदी की हिस्सेदारी है। इसके अलावा कुछ मोबाइल फोन कंपोनेंट्स का 90 पर्सेंट तक आयात चीन से ही होता है। फार्मा कंपनियां अपना 65 से 70 पर्सेंट तक का आयात चीन से ही करती हैं। और इनके साथ लाखों की संख्या में लोग रोजगार से जुड़े है। भारत में चीनी मोबाइल का मार्केट भी बहुत बड़ा है। चीन दिल्ली मेट्रो में काम करता रहा है। दिल्ली मेट्रो में एसयूजीसी (शंघाई अर्बन ग्रुप कॉर्पोरेशन) नाम की कंपनी काम कर रही है।( जिस कांट्रेक्ट को अब भारत ने शायद खत्म कर दिया है) भारतीय सोलर मार्केट पूर्ण रूप से चीनी उत्पाद पर निर्भर है। और इसका दो बिलियन डॉलर का व्यापार है। भारत का थर्मल पावर भी चीनियों पर ही निर्भर है। पावर सेक्टर के 70 से 80 फीसदी उपकरण चीन से ही मंगाये जाते हैं। दवाओं के लिए कच्चे माल का आयात भी भारत चीन से ही करता है। इस मामले में भी भारत पूरी तरह से चीन पर निर्भर है।

भारत में चीनी मोबाइल कंपनियों की स्थिति

आज जिस मोबाइल से मेसेज फॉरवर्ड किये जा रहे है चीनी समान के विरोध के वो भी मेड इन चीन या असेम्बल इन इंडिया ही हैं । भाषण से आंदोलन से कुछ नही हो सकता जबतक की मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में काम न किया जाए । पिछले 10 साल से उत्तरोत्तर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की अनदेखी और आयात पर निर्भरता ने देश की दुःखती नब्ज को दबा रखा है और सरकार की ऐसी कोई योजना अभी फलित होती नजर भी नही आ रही है ।

देश मे ब्यूरोक्रेसी का और कमीशन का धंधा इस कदर हावी है कि उद्योग में हर समय अड़चन बनी पड़ी है बड़े बड़े उद्यमियों के वर्चस्ववादी पूंजीवादी सोच के साथ देश मे सरकारे भी अपना एक नया मॉडल ही बना रखी है पूंजी से सत्ता और सत्ता से पूंजी।

सोलर सेल और प्लेट में भारत की स्थिति ।

देश में सौर ऊर्जा का मार्केट साइज हजारों मेगावाट का है, जिसमें चीनी कंपनियों की हिस्सेदारी लगभग 90% के आस पास की है। इस सेगमेंट में चीनी माल से निजात पाना लगभग नामुमकिन है, क्योंकि घरेलू मैन्युफैक्चरिंग कंपनियां कमजोर हैं और घरेलू कंपनियां भी असेम्बली मॉडल पर ही चल पड़ी हमारे मित्र जो सोलर सेल में कई वर्षों तक रिसर्च कर चुके है उनके अनुसार स्थिती यह है कि अपने देश मे उन्हें कहीं जगह न मिलने के कारण विदेशों के रुख लेना पड़ गया ।

कंप्यूटर हार्डवेयर सॉफ्टवेयर टेलीकॉम तथा सूचना तकनीकी
कम्प्यूटर हार्डवेयर के विषय मे तो पुरा विश्व ही चीन पर निर्भर है क्योंकि सस्ती मैनपॉवर के कारण usa तक कि काफी कंपनियों ने अपने सयंत्र चीन में लगा रखे है । लगभग हमारे देश मे दिखने वाले 90% कंप्यूटर हार्डवेयर चीन से सम्बंधित है । टेलीकॉम में केवल चीन की एक ही कम्पनी हुवाई ने शायद ही कोई टेलिकॉम सर्विसेज प्रोवाइडर होगा जिसमें बिना उसके प्रॉडक्ट के कोई प्रॉजेक्ट पूरा किया हो ।

सॉफ्टवेयर में हमारी निर्भरता तो कम है चीन पर परन्तु हमारी अनगिनत it स्टार्टअप्स और कम्पनियों में उनके लोग अपना अच्छा इन्वेस्टमेंट कर रखे है । भारत के सक्सेस फूल ब्रांड जो E कामर्स से है उनमें चीन के निवशकों की हिस्सेदारी है जैसे paytm जिसमे अलीबाबा नामक चीनी कंपनी का अच्छा खासा शेयर है। ओला जो ऐप्प बेस ट्रेवल कंपनी है इसमें १ बिलियन से भी अधिक की इन्वेस्टमेंट China-Eurasian Economic Cooperation Fund (CEECF) की है मेक माय ट्रिप इबिबो में भी इनकी हिस्सेदारी है फ्लिपकार्ट swiggy zomato आदि

टिकटॉक और शेयर इट एप्लीकेशन जो पूरे देश में धूम मचाई हुई है ऐसा कोई मोबाइल नहीं जिसमे SHAREIT एप्लीकेशन न हो। और यूट्यूब के मुकाबले TIKTOK की लोकप्रियता के बारे में क्या कहना जहाँ पर सरकार ने भी अपनी योजना के प्रचार प्रसार के अकाउंट बनाये हुए हैं।

जब सरकार के उपक्रम मेट्रो और BCCI जहां वीवो कम्पनी आईपीएल की टाइटल स्पोंसर है बिना चाइना के कम्पनी के सहयोग से नहीं चल पा रही। मुंबई मेट्रो के स्टेशन उनके नाम पर रखे हुए है वहां पर केवल विरोध के लिए विरोध की बात कहाँ तक न्याय संगत है। सही मायने में चाइना उत्पाद के विरोध लिए उस प्रकार की योजना के साथ विजन का होना भी आवश्यक है।

जबसे देश में आर्थिक उदारवाद आया तब से भारत केवल एक बढ़िया बाजार बना । और सरकार का जोर रहा सर्विस सेक्टर पर जबकि ग्रोथ होती है मैन्युफैक्चरिंग से। इसलिए भारत सॉफ्टवेयर में एक नंबर और हार्डवेयर में नील ।

हमारे देश में बहुत से ऐसे साइंटिस्ट है जिनके पास सोलर सेल के अनगिनत रिसर्च पेपर है और प्रोटोटाइप लेकिन इस देश की नीतियों ने रिसर्च की ऐसी हालत कर दी कि किसी नया साइंटिस्ट को रिसर्च के लिए ब्रेक ही नही मिलेगा । नतीजन इस देश के क्रीम ब्रेन विदेशों में जॉब के अवसर देख देश छोड़ देते हैं ।

तात्कालिक परिणाम -एटलस साइकिल का नाम तो सुना होगा ! अपनी आखिरी मैनुफैक्चरिंग यूनिट जो साहिबाबाद में थी पैसों की कमी की वजह से बंद हो गई है । 1000 इम्प्लाई से ऊपर लोग बेरोजगार होंगे जिसमे कुशल अर्धकुशल सब है ।।

वैसे “मेड इन इंडिया” के रूप में मोदी सरकार इस तरफ कदम उठाने की बात कह रही हैं समय ही बता पायेगा की कितना सक्षम और कितना अक्षम और अब बाकी सब हम पर निर्भर है, कि हम इस दिशा में अपने देश के साथ कितना कदम से कदम मिला कर चल सकते हैं।किसी भी देश को युद्ध में हराने के लिए सैनिकों से आमने-सामने की लडाई करना ही आवश्यक नहीं बल्कि सामने वाले देश के व्यवसाय को गिरा देना भी जीत दिलाने में सहायक हो सकता है।

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