वाराणसी स्थित महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ के संविदा पर 78 शिक्षकों के सेवा नवीनीकरण का मामला
वाराणसी-बनारस-काशी काफी मायनों में खास है अपने रीतिरिवाज, अल्हड़ ताने-बाने के कारण विश्व की सबसे पुरानी संस्कृति दर्शन और अपनी परंपराओं के कारण तो मशहूर ही रहा है।
इन सब के बाद वाराणसी अब क्योटो बनने और प्रधानमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद देने के लिए भी विशेष है। अब आते है मुद्दे पर भारत सहित दुनिया भर में जब नौकरियों पर संकट है देश में भी भीषण संकट है ऐसे में 56 इंच का सीना भी शर्म के मारे स्वेटर की गोद में छिपा मोर में अपना गर्व देख कर फूला नहीं समा रहा है क्यों सही कहा ना ?
पूरे देश में केंद्रीय विश्वविद्यालय और राज्य शाषित विश्विद्यालय में शिक्षा को तहस नहस करने वाले लोग बिठाये गये है, ज्यादा दूर नहीं जाना महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ का उदाहरण आपने मेरी पिछली रिपोर्ट में पढ़ा ही था कि कुलपति त्रिलोकीनाथ सिंह अपने राजनैतिक दल के संरक्षण में खुलेआम चोरी और भ्रस्टाचार कर रहे है।
हैरानी की बात ये है कि राज्यभवन भी आंखे मूंदे बैठकर तमाशा देखने में व्यस्त है, ऐसा क्यों है ! कही ना कही लक्ष्मी की माया जो ठहरी तभी तो इतनी चोरी पर कोई संज्ञान लेने वाला नहीं है। 78 शिक्षकों की रोजीरोटी का मामला इसी का नतीजा है जो तूल पकड़ता जा रहा है 78 परिवार भूखमरी के कगार पर है , किसी के बच्चें की शादी है तो किसी के परिवार में कैंसर के उपचार में किमियो थैरेपी चल रही है।
परन्तु कुलपति अपनी अय्याशी और पार्टी करने में व्यस्त है। 30 जून को इन लोगों की संविदा की मियाद खत्म हुई जिसे सरकारी नियमों के अनुसार 1 जुलाई को नवीनीकरण के द्वारा विस्तार दिया जाना था पर कुलपति त्रिलोकीनाथ सिंह की मक्कारी और रजिस्ट्रार के पैसे बनाने की मंशा से विस्तार नहीं दिया जा सका , बेशर्मी यहीं नहीं ठहरती इन लोगों को मौखिक आधार पर बुलाकर काम करवाया जाता रहा और बदले में एक रुपया भी नहीं दिया गया आखिर क्यों ?
ये किसकी जिम्मेदारी है संज्ञान लेने की तरफ सरकार खोखले दावे करती है दूसरी तरफ नौकरियों को खत्म करती है , विपक्ष के पास भी मुद्दा फिजूल की बातों पर छाती कूटने का है पर किसी ऐसे गंभीर विषय पर बात करने का नहीं।