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सत्ता के विरूद्ध उठने वाली सभी छोटी बडी सभी आवाज़ों को साथ लेकर सम्पूर्ण विपक्ष के निर्माण से ही सत्ता परिवर्तन संभव!

बिहार में सिर्फ विपक्ष से नहीं बल्कि सम्पूर्णविपक्ष से सत्ता परिवर्तन संभव: सादातअनवर

सत्ता पक्ष की नीतियों से असहमति जताने वाले छोटे बड़े सभी समूहों, संस्थाओं, राजनीतिक दलों, गैर राजनीतिक संगठनों को सामूहिक रूप से विपक्ष कहते हैं।

जब सरकार की नीतियां जनसरोकार पर केन्द्रित ना होकर सिर्फ जूमलेबाजी, बयानबाज़ी और ड्रामेबाजी के इर्द गिर्द चक्कर लगाती दिखाई पड़ती हैं तो सरकार के विरुद्ध उठने वाली सभी ध्वनियों को मिलकर विपक्ष का नाम दिया जाता है। मतलब सत्ता के विरूद्ध उठने वाली सभी छोटी बडी आवाज़ों और स्वरों को निसंदेह विपक्ष कहा जाएगा।

बिहार की सत्ता पर विराजमान माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार जी हैं जिनकी सरकार के सहयोगी भाजपा और लोजपा हैं। अर्थात जदयू,भाजपा और लोजपा की संयुक्त सरकार सत्तापक्ष और बाकी सभी विपक्षी हैं।

बिहार सरकार की नीतियों से असहमति जताने वालों में राजद, कांग्रेस, रालोसपा, हम, वंचित इंसान पार्टी, भारतीय सब लोग पार्टी, माले, जाप, सी पी आई, सी पी एम, एम आई एम , बसपा जैसे राजनीतिक दल मुख्य रूप से हैं। साथ ही सामाजिक और गैर राजनीतिक संगठनों की बड़ी संख्या भी सरकार की नीतियों से आहत होकर विरोध के स्वर बुलन्द कर रहे हैं।

इसके अतिरिक्त दर्जनभर ऐसे राजनीतिक दल भी विपक्षी ही कहलाएंगे जिनका वजूद बहुत नहीं है लेकिन उक्त पार्टी की अगुवाई पूर्व विधायक या पूर्व सांसद कर रहे हैं।

कई युवा पीढ़ी के जज़्बाती लोगों ने राजनीतिक दलों में युवाओं की अनदेखी होता देख अपनी अलग पार्टी निर्मित किया है और वो सरकार के विरूद्ध युवाओं की अनदेखी के सवाल पर बिगुल फूंके हुए हैं ऐसे लोग भी विपक्षी ही कहे जाएंगे।

लेकिन विपक्ष की इतनी बड़ी संख्या और सत्ता के विरूद्ध नाराजगी के बावजूद विपक्षी कमजोर दिखाई दे रहे हैं। इसका कारण ये है कि विपक्ष एक उद्देश्य के लिए सरकार के विरुद्ध उठने वाली सभी छोटी बडी आवाज़ों को मिलाकर सम्पूर्ण विपक्ष बनना नहीं चाहता।

मुख्य विपक्षी दल राजद और कांग्रेस एक दूसरे को साथ लेकर चलना तो चाहते हैं लेकिन रालोसपा और हम के द्वारा लीडरशिप के सवाल पर उनसे किनारे रहने या किनारे कर देने में ही अपनी बेहतरी समझते हैं। रालोसपा और हम के बयानों से विपक्षी एकता के बनते बिगड़ते रिश्ते को गलत दिशा मिल जाती है। जाप एक उभरता हुआ दल है जो लगातार सत्ता के विरूद्ध मुखर होकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराए हुए है लेकिन समय समय पर मुख्य विपक्षी दलों की कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह लगाकर विपक्षी खेमे से अपने आपको दूर कर लेता है। माले,सी पी आईं और सी पी एम जैसे वामदल जो प्रदेश के किसी खास क्षेत्र में ही थोड़ा असर रखते हैं वो भी अपने आपको विपक्षी खेमे में उचित भागीदारी नहीं मिलने के संकेत से चिंतित हैं।

वहीं पूर्व सांसद और पूर्व मंत्री द्वारा नव गठित सब लोग पार्टी वर्तमान सत्ता के मुखिया की कार्यशैली से आहत होकर जन सरोकार के मुद्दे पर सरकार को कटघरे में खड़ा करते दिखाया दे रहे हैं जबकि वे एकला चलो की राह के लिए नए विकल्प पर अड़े हैं लेकिन विपक्ष की एकजुटता में उनकी भी बड़ी उपयोगिता हो सकती है।

उधर जाती बिरादरी और धर्म के आधार पर निर्मित राजनीतिक दलों की विपक्षी एकता और भागीदारी में अल्पसंख्यक समाज अपने को ठगा महसूस कर रहा है।

ये समूह भी अपने राजनीतिक दलों को भी विपक्षी खेमे में सम्मिलित कर अपनी उचित भागीदारी की मांग कर रहा है। प्रदेश में अल्पसंख्यक समाज के नाम से जुड़े दलों में एम आई एम, जनता दल राष्ट्रवादी, भारतीय इंसान पार्टी, पीस पार्टी,आईं एन एल शामिल हैं जो लगातार वर्तमान सरकार की जन विरोधी नीतियों की कटु आलोचना करते दिखाई देते हैं। इनमें एम आई एम की स्थिति बेहतर है लेकिन सत्ता का भय दिखाकर अल्पसंख्यक समाज का थोक में वोट पाती रहीं पार्टियां धर्म का सहारा लेकर इनको भागीदारी देने के पक्ष में बिल्कुल नहीं है जिससे तंग आकर इसबार अलग थलग पड़ा अल्पसंख्यक वर्ग का बड़ा हिस्सा विपक्षी एकता की गुहार लगाने वाले दलों से नाराज़ बताया जा रहा है।

इसके साथ ही समाजवादी – अंबेडकरवादी विचारधारा के प्रचारक और समर्थक भी वैकल्पिक व्यवस्था परिवर्तन की मंशा से सत्ता विरोधी खेमे में ही हैं।

कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनकी अपनी बिरादरी और खासकर युवा पीढ़ी में अच्छी पैठ है और वे राजनीति का शिकार होकर या तो जेल में बंद हैं या फिर टक टकी लगाय विपक्षी एकता और वैकल्पिक व्यवस्था की राह देख रहे हैं। इतना ही नहीं देश प्रदेश के बड़े सियासी योद्धाओं के नाम पर बने राजनीतिक दल भी विपक्ष के है हिस्से हैं जो जेपी, लोहिया, चन्द्रशेखर, चौधरी चरण सिंह, डा अम्बेडकर, कर्पूरी, जार्ज फर्नांडिस, लोक बंधु राज नारायण, राम कृष्ण हेगड़े, देवगौड़ा के नाम को अपने दल का संस्थापक बताते हैं।

बसपा की भी अपनी हैसियत है। लगभग सभी क्षेत्रों में बसपा का असर है और लगातार सत्ता के विरूद्ध अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रही है बसपा भी ।साथ ही भीम आर्मी जैसे संगठन भी तेज़ी से बिहार में आगे बढकर सरकार की नीतियों से असहमति व्यक्त कर रहे हैं।

ऐसे में सत्ता की नीतियों, कार्यशैली, विफलताओं, जन सरोकार की अनदेखी, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे पर मुखर रूप से कम या ज्यादा विरोध करने वाले सभी लोगों, समूहों, पार्टियों और संगठनों को सामूहिक रूप से विपक्ष कहा जाएगा जो लगातार सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए संघर्ष कर रहे हैं चाहे उनका असर पड़े या न पड़े।

सत्ता के विरूद्ध उठने वाली इन सभी आवाज़ों को मिलकर सत्ता परिवर्तन करने और नए संकल्प के साथ नए विकल्प प्रस्तुत करने हेतु #सम्पूर्णविपक्ष का स्वरूप दिया जाना बेहद जरूरी है। प्रदेश के कई लेखक, कलमकार, साहित्यकार, किसान नेता तथा सामाजिक चेतना के लिए ज़मीन पर काम करने वाले ज़िम्मेदार लोगों का प्रवासी मज़दूरों की स्थिति को देखने के बाद ये मानना है कि उक्त सभी विरोधी स्वरों से संवाद कर और सबकी मंशा से सहयोग, सहमति और समन्वय के आधार पर #सम्पूर्णविपक्ष का निर्माण करने की पहल किए बिना साधन संसाधन से लैस सत्ता की जन विरोधी नीतियों से छुटकारा नहीं पाया जा सकता है।


प्रदेश के कई लेखक, कलमकार, साहित्यकार, किसान नेता तथा सामाजिक चेतना के लिए ज़मीन पर काम करने वाले ज़िम्मेदार लोगों का प्रवासी मज़दूरों की स्थिति को देखने के बाद ये मानना है कि उक्त सभी विरोधी स्वरों से संवाद कर और सबकी मंशा से सहयोग, सहमति और समन्वय के आधार पर #सम्पूर्णविपक्ष का निर्माण करने की पहल किए बिना साधन संसाधन से लैस सत्ता की जन विरोधी नीतियों से छुटकारा नहीं पाया जा सकता है।

अभी वर्तमान स्थिति ये है कि जातीय समीकरण के जोड़तोड़ और गुणा भाग के आधार पर दो या तीन दलों का गठजोड़ करके सम्पूर्ण विपक्ष की सोच को नुक़सान पहुंचाया जा रहा है और सत्ता के विरूद्ध फूंके गए सभी बिगुलों को खंडित कर तीसरे विकल्प जैसा संकट खड़ा किया जा रहा है जिससे #सत्तापक्ष को पुनः जीवन दान मिल जायेगा जिसके कारण सभी विपक्षी दलों की विफलता और नेक नियति पर प्रश्चिन्ह लगना तय है। जिससे आगामी लोक सभा चुनाव में नुक़सान तय है।

ऐसी स्थिति में जेपी के रोल को निभाने हेतु किसी बुज़ुर्ग नेता की जरूरत है जो सत्ता की चाहत से मुक्त होकर सम्पूर्णविपक्ष का निर्माण कर सके जिसमे सबको उचित अवसर और भागीदारी देकर वैकल्पिक व्यवस्था की रूप रेखा तय हो।

सर्वसमाज की अपेक्षाओं और प्रदेश के चौमुखी विकास के मॉडल के साथ सम्पूर्ण विपक्ष शंखनाद करे तो सत्ता परिवर्तन निश्चित वरना सम्पूर्ण विपक्ष को गोल बन्द नहीं करके जातीय समीकरण के आधार पर अपनी अपनी डफ़ली अपना अपना राग की राह सत्ता पक्ष को वाकओवर देने जैसा होगा।

सम्पूर्ण विपक्ष के संदर्भ में ये बताना ज़रूरी समझता हूं कि सभी दलों को चुनावी भागीदारी दिए बिना भी सबको उचित अवसर दिया जा सकता है। अर्थात जो दल, समूह या संगठन चुनाव लड़ने में सक्षम नहीं हैं मतलब जिनके पास धन और कार्यकर्ताओं का अभाव है उन सभी को सरकारी निगमों में सहभागी बनाकर भी सबको उचित अवसर की बात को पूर्ण किया जा सकता है शर्त है कि सबकी नियत सत्ता परिवर्तन कर जनहितकारी विकल्प सम्पूर्ण विपक्ष की एकता के साथ प्रस्तुत करने की हो ।
लेखक:
सादातअनवर
चन्द्रशेखर स्कूल आफ पॉलिटिक्स
Chandrashekhar School of Politics(CSP)
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