ऐसी है नवरात्रि की चौथी दुर्गा मां कूष्मांडा जी की सम्पूर्ण कथा।
आपको बता दें कि महामाई का यह दिव्य स्वरूप जगत जननी आदिशक्ति देवी पार्वती के विवाह के बाद से लेकर उनकी संतान कुमार कार्तिकेय के अवतार के बीच का है। इसलिए कहा जाता है कि संतान की इच्छा रखने वाले भक्तों को देवी के इस दिव्य स्वरूप की पूजा आराधना करनी चाहिए। इस रूप में देवी माँ आदिशक्ति संपूर्ण सृष्टि को धारण करने वाली और भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने वाली है।
नवरात्रि पर्व की चौथी दुर्गा विश्व भर में माता कूष्मांडा जी के नाम से जानी जाती है। नवदुर्गा के इस दिव्य स्वरूप को दुखों को हरने वाली मां भी कहा जाता है।
ऐसा माना जाता है कि नवरात्री के इस रोज़ साधक का मन ‘अनाहत’ चक्र में अवस्थित होता है, इसलिए इस दिन उसे अत्यंत पवित्र और अचंचल मन से नव दीर्घा के दिव्य स्वरूप माँ कूष्माण्डा को ध्यान में रखकर पूजा-उपासना के कार्य में लगना चाहिए। इस देवी का निवास स्थान सूर्य है। इसलिए माता के इस स्वरूप के पीछे सूर्य भगवान का तेज़ दिखाया जाता है।
पौराणिक कथा – हिन्दू धर्म ग्रंथो के आधार पर पता चलता है कि इस सम्पूर्ण सृष्टि को दानवों के अत्याचारों से मुक्त करने के लिए आदि शक्ति दिव्य अवतार कुष्मांडा के नाम से प्रकट हुई।
आपको बता दें कि कुष्मांडा का अर्थ होता है कुम्हड़ा। ऐसी मान्यता है कि देवी के इस स्वरूप को प्रसन्न करने के लिए पूजा के दौरान कुम्हड़े की बलि भी दी जाती है। कुम्हड़े और अण्ड अर्थात ब्रह्मांड से जुड़ाव होने की वजह आदिशक्ति के स्वरूप को दिव्य देवी माँ कुष्मांडा के नाम से जाना जाता है।
हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ बताते है कि जब ये सृष्टि अपने अस्तित्व में नहीं थी तब इन्हीं देवी ने इस पूरे ब्रह्मांड को रचा था। अपनी ज़रा सी मुस्कान से इस पूरे अण्ड अर्थात ब्रह्मांड की संरचना करने वाली इस दिव्य देवी को कुष्मांडा कहा जाता है।
सृष्टि का निर्माण करने की वजह से इन्हे आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति के नाम से भी पूजा जाता है। विद्वान व् ज्ञानी बताते है इस ब्रह्मांड के सभी प्राणियों तथा वस्तुओं में इसी देवी का तेज समाया हुआ है।
स्वरूप – जगत जननी देवी-आदि शक्ति का यह स्वरूप भक्तो को अत्यंत प्रिय है। इनके चेहरे पर हल्की मुस्कान है और इनकी आठ भुजाएं हैं जिनमे क्रमशः कमल-पुष्प, कमंडल, गदा, शंख,धनुष, बाण,चक्र और कलश विराजमान है।
आपको बता दें कि देवी के आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला सजी हुई है। माँ आपने हाथ में अमृत कलश लिए अपने सभी भक्तों को उत्तम स्वास्थ्य और लम्बी आयु का आशीर्वाद देती हैं।
सिंह की सवारी के साथ माता अधर्मियों का सर्वनाश करती हुई भक्तों की रक्षा करती है। प्राचीन मान्यता है कि देवी के इस स्वरूप की पूजा करने से भक्तों को हर प्रकार के डर से मुक्ति मिलती है और उनका कल्याण होता है।
श्लोक – ज्ञानी जन बताते है कि माँ कूष्माण्डा को प्रसन्न करने के लिए इस श्लोक का जप करना चाहिए
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥
नवरात्रि के चौथी सुबह से ही माता कूष्माण्डा जी की पूजा आराधना शुरू हो जाती है। यह देवी अत्यल्प सेवा और भक्ति से बहुत जल्द प्रसन्न हो जाती है। जो व्यक्ति निस्वार्थ भाव से देवी कूष्माण्डा की अर्चना करता है भविष्य में उसे कभी भी दुखों और कष्टों का सामना नहीं करनी पड़ता।
आपको बता दें कि महामाई का यह दिव्य स्वरूप जगत जननी आदिशक्ति देवी पार्वती के विवाह के बाद से लेकर उनकी संतान कुमार कार्तिकेय के अवतार के बीच का है।
इसलिए कहा जाता है कि संतान की इच्छा रखने वाले भक्तों को देवी के इस दिव्य स्वरूप की पूजा आराधना करनी चाहिए। इस रूप में देवी माँ आदिशक्ति संपूर्ण सृष्टि को धारण करने वाली और भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने वाली है।