क्या है स्वतंत्र पत्रकार प्रशांत कनौजिया और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मामले का पूरा सच।
पूरे मामले की जांच करते हुए मंगलवार को स्वतंत्र पत्रकार प्रशांत कनौजिया को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ कथित आपत्तिजनक ट्वीट के मामले में तत्काल जमानत पर रिहा का आदेश दिया है।
हाल ही में उत्तर-प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लेकर सोशल-मीडिआ पे कुछ ऐसी घटनाएँ घटित हुई जिससे उत्तर-प्रदेश पुलिस ने स्वतंत्र पत्रकार प्रशांत कनौजिया के साथ अन्य दो और पत्रकारों को भी हिरासत में लिया, जिससे सोशल मीडिया के साथ साथ देश में भी अफ़रा-तफ़री मच गयी।
दरअसल पत्रकार प्रशांत ने हेमा नाम की एक महिला का वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया था जिसमे वह उत्तर-प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपने प्रेम संबंधों का दावे कर रही है। उस वीडियो में महिला का कहना है कि वह पिछले एक साल से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के द्वारा योगी आदित्यनाथ के साथ प्रेम-संबंध में है। लेकिन वो अब इस पूरे प्रकरण की वजह से बहुत ही तनाव में रहने लगीं है। और चाहती है कि योगी आदित्यनाथ इस बारे में उनसे सामने आकर बातचीत करे। पत्रकार प्रशांत ने इस वीडियो को शेयर करते हुए एक कमेंट भी लिखा था। जिसकी वजह से ये सारा मामला शुरू हुआ। दूसरी ओर पत्रकार इशिका सिंह और अनुज शुक्ला को इस अपलोड किए गए वीडियो पर बहस आयोजित करने के लिए गिरफ्तार किया गया था।
ख़बरों के मुताबिक इस घटना के बाद उत्तर-प्रदेश की पुलिस ने पत्रकार प्रशांत और दो अन्य पत्रकारों को हिरासत में लिया। 8 जून शनिवार को पत्रकार प्रशांत कनौजिया को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया और फिर उन्हे न्यायायिक हिरासत में भेज दिया गया था। पत्रकार प्रशांत के विवादास्पद ट्वीट की वीडियो के साथ उनकी टिप्पणी पर शिकायत करने वाले लखनऊ के सब-इंस्पेक्टर विकास कुमार हैं। उनका कहना है कि पत्रकार प्रशांत के “मुख्यमंत्री जी के खिलाफ़ आपत्तिजनक शब्द थे” और वो “अशोभनीय” थी। जिसकी वजह से उन्हे हिरासत में लिया गया।
दूसरी तरफ प्रशांत की पत्नी जगदीशा ने आरोप लगते हुए कहा है कि कुछ लोगों ने सादे कपड़े में उनके घर आकर ना गिरफ़्तारी का वॉरंट दिखाया और न गिरफ़्तारी का कारण। जगदीशा बताती है कि “जिस ट्वीट को लेकर इतना हंगामा किया गया वो एक मज़ाकिया ट्वीट था और उसे कई लोगों ने रिट्वीट किया, लाइक किया. कई ने उसके बारे में फ़ेसबुक पर भी लिखा. फिर सभी लोगों पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई? सिर्फ़ प्रशांत के खिलाफ़ कार्रवाई क्यों हुई?”
इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने प्रशांत कनौजिया की गिरफ्तारी पर भी कई सवाल उठाये है। सर्वोच्च न्यायालय ने मजिस्ट्रेट द्वारा कनौजिया को 11 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजने की घटना पर भी बहुत निंदा जताई है। न्यायालय का कहना है कि ‘ देश के प्रत्येक नागरिक की स्वतंत्रता पवित्र है और इससे किसी तरह का कोई भी समझौता नहीं किया जा सकता है। इसे संविधान द्वारा सुनिश्चित किया गया है और इसका उल्लंघन नहीं किया जा सकता` न्यायालय का कहना है कि प्रशांत के विचार अलग हो सकते है लेकिन उन्हे इस आधार गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है सर्वोच्च न्यायालय के मुताबिक गिरफ्तारी और हिरासत गैर कानूनी है और इससे व्यक्तिगत आज़ादी का हनन होता है। वहीं जगदीशा अरोड़ा की ओर से पेश हुईं वकील नित्या रामाकृष्णनन ने कहा कि जिस ट्वीट के आधार पर गिरफ्तारी की गई है, वो कोई अपराध नहीं है और सरकार की इस घटना से बोलने की आज़ादी और जीने के अधिकार पर सीधा सीधा हमला किया गया है
वकील अर्जुन इस मामले में अपना ब्यान देते हुए कहते है कि यह गिरफ़्तारी नहीं बल्कि राज्य द्वारा किया गया अपहरण हैं उनका कहना है कि अगर किसी पत्रकार के साथ ऐसा हो सकता है तो बाकी लोग तो अपनी आलोचना बंद ही कर देंगे। और शायद सरकार की सोच भी यही है। वकील अर्जुन शेओरान कहते है कि “अगर योगी आदित्यनाथ को लगा था कि ये अपमान-जनक क्रिया हैं तो उन्हें एक केस फ़ाइल करना चाहिए था ताकि अभियुक्त को बुलाया जाता और शायद उसे सज़ा भी होती.”
एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया ने उत्तर-प्रदेश पुलिस की कड़ी निंदा करते हुए कहा है कि ये सब प्रेस को डराने और अभिव्यक्ति की आज़ादी का दम घोटने की कोशिश की जा रही है। पूरे मामले की जांच करते हुए मंगलवार को स्वतंत्र पत्रकार प्रशांत कनौजिया को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ कथित आपत्तिजनक ट्वीट के मामले में तत्काल जमानत पर रिहा का आदेश दिया है।
अब सवाल ये आता है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकताँत्रिक देश में अगर कोई पत्रकार किसी राजनीतिक सांसद के विचारों के प्रति अपने विचार रखता है तो उसे इसी तरह से गिरफ्तार करवाया जाएगा ?। क्या इस देश में पत्रकारों को स्वतंत्र रूप से सत्य लिखने की भी आज़ादी नहीं है ?? अगर किसी पत्रकार को सिर्फ एक वीडियो रीट्वीट के लिए गिरफ्तार किया जा सकता है तो आप समझ सकते है कि आम आदमी का आलोचना करने पर क्या हाल किया जा सकता। क्या हम लोकताँत्रिक शासन में जी रहे है या फिर तानाशाही शासन में ??
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