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जानिए माँ नवदुर्गा के प्रथम स्वरूप देवी शैलपुत्री जी की सम्पूर्ण कथा।

एक कथा के अनुसार जब देवी सती से भगवान् का अपमान सहन नहीं हुआ तो उन्होंने अपने आप को यज्ञ की आग में भस्म कर दिया | इस दृश्य से भगवान् शंकर क्रोधित हो उठे और उन्होंने अपने एक भैरव को भेज कर राजा का वध कर दिया और उसका सारा यज्ञ पूर्णतः विध्वंस करा दिया। अपने अगले जन्म देवी सती ने पर्वतराज हिमालय की बेटी पार्वती के रूप में जन्म लिया और भगवान शिव से विवाह किया ।

हिन्दू मान्यताओं में माँ जगत जननी देवी आदि शक्ति जी को सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त है। नाम चाहे मां अंबे हो, मां दुर्गा हो , मां भगवती हो या फिर शेरो वाली, पूजा आराधना देवी आदि शक्ति की होती है।

हिन्दू धर्म ग्रंथो के आधार पर माँ भगवती के मुख्य 9 रूप है। जिनका नवरात्री के दिनों में सबसे अधिक पूजन होता है। कहा जाता है कि 9 इन दिनों में माँ अपने भक्तों को भरपूर आशीष देती है। इन्ही दिनों में माँ प्रसन्न होकर भक्तों को विशेष आशीर्वाद देते हुए उनके सभी कष्ट हर लेती है।

नवरात्रों के इन पावन 9 दिनों माँ भगवती के एक एक करके सभी रूपों की पूजा अराधाना होती है। इन रूपों के नाम इस प्रकार है।

1.माँ शैलपुत्री
2.माँ ब्रह्मचारिणि
3.माँ चंद्रघंटा
4.माँ कूषमाण्डा
5.माँ स्कंदमाता
6.माँ कात्यायनी
7.माँ कालरात्रि
8.माँ महागौरी
9.माँ सिद्धिदात्री

प्रथम् शैल-पुत्री च, द्वितियं ब्रह्मचारिणि , तृतियं चंद्रघंटेति च चतुर्थ कूषमाण्डा
पंचम् स्कन्दमातेती, षष्टं कात्यानी च, सप्तं कालरात्रेति, अष्टं महागौरी च
नवमं सिद्धिदात्री

ये थे माँ भगवती के 9 दिव्य रूप लेकिन आज हम आपको प्रथम नवरात्रे की प्रथम दुर्गा देवी माँ शैलपुत्री जी के बारे में कुछ ऐसी अनसुनी बाते बतायेगें जिन्हे शायद ही कभी आपने सुना होगा।

माँ शैलपुत्री – नवदुर्गाओं सबसे प्रथम दुर्गा हैं देवी शैलपुत्री। ग्रंथो के अध्यन से पता चलता है कि इन्होने पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था जिसकी वजह से इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। अपने पिछले जन्म में ये राजा दक्ष की पुत्री थी और भगवान शंकर जी की पत्नी ।

एक कथा के अनुसार पता चलता है कि एक बार राजा दक्ष ने एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया था जिसमे भगवान् शिव के अलावा सभी देवी देवता आमंत्रित थे। देवी सती ने भी भगवान् शिव से वहां जाने ज़िद की लेकिन शिव नहीं माने और सती अकेली ही यज्ञ में चली गयी और वहा पहुँच कर तर्क करने लगी। उनके पिता राजा दक्षा ने उनके पति (भगवान शिव) का अपमान करते हुए बहुत अपशब्द कहे।

जब देवी सती से भगवान् का अपमान सहन नहीं हुआ तो उन्होंने अपने आप को यज्ञ की आग में भस्म कर दिया | इस दृश्य से भगवान् शंकर क्रोधित हो उठे और उन्होंने अपने एक भैरव को भेज कर राजा का वध कर दिया और उनका सारा यज्ञ पूर्णतः विध्वंस करा दिया। अपने अगले जन्म देवी सती ने पर्वतराज हिमालय की बेटी पार्वती के रूप में जन्म लिया और भगवान शिव से विवाह किया ।

नवरात्रे की प्रथम सूर्य किरण के साथ ही इनकी पूजा-पाठ व् आराधना शुरू हो जाती है। ज्ञानी विद्वान बताते है कि इनको प्रसन्न करने के लिए इस श्लोक का जप किया जाता है।
वन्दे वंछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् | वृषारूढाम् शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ||

बीज मंत्र – ॐ ह्रीं क्लीं शैलपुत्रये नमः

स्वरूप माता का एव स्वरूप भक्तों की आँखों को बहुत भाता है। इनके स्वरूप में इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित होता है।

यह धन-धान्य-ऐश्वर्य, सौभाग्य और मोक्ष देने वाली माता मानी गयी है। जो भी व्यक्ति प्रथम नवरात्र देवी शैलपुत्री का श्रद्धापूर्वक ध्यान करता है उसे कभी भी किसी चीज़ की कमी नहीं रहती है और उसके सभी कष्टों का निवारण हो जाता है।

नावत्रों के शुभ अवसर पर हम भी माँ शैल पुत्री से विनती करते है कि वे आपके सभी कष्टों को हरते हुए आपका जीवन में सुख और समृद्धि से भर दें। एक बार हमारे साथ आप भी अपनी जीवः को पवित्र करते हुए कहें –
जय माँ शैलपुत्री।

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